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________________ २२० ] [तित्थोगाली पइन्नय आर्य शय्यंभव के शिष्य का नाम यशोभद्र था। वे गुणों को राशि थे। आर्य यशोभद्र के शिष्य अति यशस्वी कुल में उत्पन्न हुए आर्य संभूत थे ।७१३। सत्तमतो थिरबाहू, जाणु य सीसुपडिच्छय सुबाहू । नामेण भद्दबाहू, अवि हि साधम्म भदोत्ति ७१४। (सप्तमतः स्थिरबाहु, जानु च शीश प्रतिच्छद सुबाहुः । । नाम्ना भद्रबाहुः, अपि हि स्वधर्मभद्र इति ।) भगवान् महावीर के सातवें पट्टधर आजानु सुन्दर एवं सुदृढ़ भुजाओं वाले भद्रबाहु थे जिनका कि दूसरा नाम स्वधर्मभद्र भी था ।७१४॥ सो पुण चौदस पुची, बारसवासाई जोग पडिवन्नो । सुत्तत्थेण निबंधइ, अत्थं अज्झयण बन्धस्स ।७१५॥ (स पुनः चतुर्दश पूर्वी, द्वादशवर्षान् योगप्रतिपन्नः । सूत्रार्थेन निबध्नाति, अर्थमध्ययनबन्धस्य ।) वे आचार्य भद्रबाहु चौदह पूर्वो के धारक थे। वे बारह वर्ष तक योग (महा प्राण ध्यान) की साधना में निरत रहे। उन्होंने छेद सूत्रों की रचना की।७१५॥ पलिया च अणावुटठी, तझ्या आसी य मज्झदेसमि । दुभिक्ख विप्पणट्ठा, अण्णं विसयं गता साहू ७१६। (पलिता च अनावृष्टिः, तदा आसीत् मध्यदेशे । दुर्भिक्ष विप्रणष्टाः, अन्य विषयं गताः साधवः ।) उनके समय में मध्य प्रदेश में अनावृष्टि के कारण भयंकर दुष्काल पड़ा। दुर्भिक्ष में अनेक लोग नष्ट हो गए और साधु गण अन्य प्रदेशों में चले गये ।७१६। कइवि विराहणा भीरूएहिं, अइभीरुएहि कम्माणं । समणेहिं संकिलिट्ठ, पच्चक्खायाई भचाई ७१७)
SR No.002452
Book TitleTitthogali Painnaya
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKalyanvijay
PublisherShwetambar Jain Sangh
Publication Year
Total Pages408
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size24 MB
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