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________________ तित्योगाली पइन्नय ] [ २१६ तमि गए य गय रागे, वोच्छिन्न पुणुव्भवे जिणवरिंदे । तित्थोगालि समासं, एगमणा मे निसामेह |७१०। (तस्मिन् गते च गतरागे, व्युच्छिन्नं पुनर्भवे जिनवरेन्द्र ।) तीर्थोद्गालिसमासं एकमना मे निशामयतः ।) उन वीतराग प्रभु महावीर के निर्वाण तथा आगामी चौवीसी की उत्पत्ति तक तीर्थंकरों को इस क्षेत्र में व्युच्छित्ति के पश्चात् तीर्थ प्रवाह का मैं जो संक्षेपतः कथन कर रहा हूँ, उसे ध्यानपूर्वक सुनो।७१० नाणुत्तमस्स धम्मुत्तमस्स, धंमिल्ल जणोवएसगस्स ! आसि सुधम्मो सीसो, वायरधम्मो य उरधम्मो ७११।। ज्ञानोत्तमस्य सूत्तम संधमितजनोपदेशस्य । आसीत् सुधर्मः शिष्यः, बहिधर्मा च उरधर्मा ।) . उत्तम ज्ञान और उतम धर्म वाले तथा धर्मरुचि जनों को उपदेश देने वाले उन भगवान महावीर के शिष्य आर्य सुधर्मा थे जिनका. कि बहिरंग और अन्तरंग धर्म के रंग में रंगा हमा था ।७११। तस्स वि य जंबुणामो, जंबुणयरासि तवियसमवण्णो । तस्त वि प्पभवो सीसो, तस्स वि सेज्जंभवो सीसो ।७१२। : (तस्यापि च जंबुनामा, जाम्बुनदराशितप्तसमवर्णः। . तस्यापि प्रभवः शिष्यः, तस्यापि शय्यंभवः शिष्यः । आर्य सुधर्मा के शिष्य थे आर्य जम्बू जिनका कि वर्ण तपाई हुई जाम्बुनद स्वर्ण को राशि के समान था। आर्य जम्बू के शिष्य प्रभव और आर्य प्रभव के शिष्य शय्यंभव थे।७१२। सेज्जंभवस्स सीसो, असभदोनाम आसि गुणरासी। सुन्दर कुलप्पसूतो, संभूतो नाम तस्सावि ।७१३। (शय्यं भवस्य शिष्यः, यशोभद्रनामा आसीत् गुणराशिः । सुन्दरकुलप्रसूतः, सम्भूत नामा तस्यापि ।
SR No.002452
Book TitleTitthogali Painnaya
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKalyanvijay
PublisherShwetambar Jain Sangh
Publication Year
Total Pages408
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size24 MB
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