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[ तित्योगाली पइन्नय
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( विज्ञानं जिन वचनं, कदापि नापि दीयते अधन्यस्य । धन्यस्य दीयते पुनः, श्रद्दधानस्य भावेन ।)
जिन वारणी एवं विशिष्ट ज्ञान कभी किसी धन्य अर्थात् हीन अथवा अधम पुरुष को नहीं देना चाहिये । वह केवल आन्तरिक श्रद्धाशील उत्तम पुरुष को ही देना चाहिए ७०६।
अहं आयरियाणं, सुतीए कण्णाहढं वा सोउं । जे तित्थो गालीएयं, एगमणा से निसामेह | ७०७ | (अस्माकं आचार्याणां श्रुत्या कर्णाहृतं वा श्रुत्वा ।
यत् तीर्थोद्गालिकायां, एकमनसा तत् निशामयतः ।
मैंने अपने आचार्यों के मुख से अथवा परम्परागत श्रुति के आधार से तीर्थोंगाली अर्थात् तीर्थों के प्रवाह के सम्बन्ध में सुन कर जो जाना है, उसे तुम एकाग्रचित्त हो सुनो ७०७/
तिणि य वासा मासद्ध अड्ड बाबतरिय सेसाई । सेसाए चउत्थीए, तो जातो वदमाण रिसी । ७०८ | (त्रयश्च वर्षाः मासार्द्धाष्ट द्वासप्ततिश्च शेषाणि । शेषायां चतुर्थ्यां ततः जातो वर्द्धमानर्षिः । )
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चतुर्थ आरक को समाप्ति में जब पचहत्तर (७५) वर्ष और साढा आठ मास शेष रहे तब महर्षि भगवान् महावीर का जन्म हुआ । ७०८।
अद्ध य सट्ठामासा, निन्न ेव हवन्ति तह य वासाईं । सेसाए चत्थीए, तो कालगतो महावीरो । ७०९ | (अर्द्धश्च साष्टामासाः त्रय एव भवन्ति तथा च वर्षाः । शेषायां चतुर्थ्यां ततः कालगतो महावीरः । )
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जब चतुर्थ आारक की समाप्ति में तीन वर्ष और साढा आठ मास अवशिष्टं थे, तब भगवान् महावीर मोक्ष पधारे ७०६।