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________________ २१६ " ( नवस्वपि वर्षे स्वेवं मनः परमावधि पुलाकादीनाम् । समकाले व्युच्छेदः, तीर्थोद्गाल्यां निर्दिष्टः । ) [ तित्योगालो पइन्नय इस प्रकार शेष 8 क्षेत्रों में भी मनःपर्यवज्ञान, परमावधि, पुलाकलब्धि आदि १० विशिष्ट आध्यात्मिक शक्तियों का एक साथ एक ही समय में विच्छेद होना "तीर्थोगाली" (तीर्थ--- ओगाली. तीर्थ प्रवाह) में बताया गया है ।७०० | चोहस पुन्वच्छेदो, वरिससतेसत्तरे विणिदिट्ठो । साहुम्म धूल भद्द े अन्न य इमे भवे भावा । ७०१ | ( चतुर्दशपूर्व च्छेदः ' वर्ष शते [च] सप्ततौ विनिर्दृष्टः । साधौ स्थूल-भद्र े, अन्ये च इमे भवेयुः भावाः । ) ( श्रुतकेवली भद्रबाहु के स्वर्गगमन के पश्चात् ) वीर निर्वारण वर्ष १७० में साधु स्थूलभद्र में चतुर्दश पूर्वों का छेद अर्थात् ह्रास बताया गया है। अन्य भी ये (निम्नलिखित) घटनाएं घटित होने का निर्देश किया गया है ७०१ । कोवीकय सज्झातो, समणो समण गुण निउण चिंतड़ उ । पुच्छर मणि सुविहियं, अइसयनाणि महासत्तं । ७०२ ( कोऽपि कृतस्वाध्यायः, श्रमणः श्रमणगुणनिपुणचिन्तकः । पृच्छति गणिनं सुविहितं, अतिशय ज्ञानिनं महासत्त्वम् ) श्रमण के गुणों में निपुण एवं चिन्तक एक साधु स्वाध्याय करने के पश्चात् सुविहित परम्परा के प्रतिशय ज्ञानी एवं महासत्वशाली गणाचार्य से पूछता है । ७०२ | भगवं कह पुव्वाओ, नहाओ उवरियाई चत्तारि । एयं जहा विदिट्ठ, इच्छह सम्भावतो कहिउ | ७०३ | (भगवन् कथं पूर्वाणि नष्टानि उपरिमानि चत्वारि । एतद् यथा विदृष्टं, इच्छथ सद्भावतः कथितु ं ।) १ पूर्वतर चतुर्वाणां विच्छेदात् चतुर्दशपूर्वं ह्रासं - हानिरित्यर्थः । छेदशब्दोऽत्र ह्रास द्योतक एव न तु विलुप्ति द्योतकः ।
SR No.002452
Book TitleTitthogali Painnaya
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKalyanvijay
PublisherShwetambar Jain Sangh
Publication Year
Total Pages408
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size24 MB
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