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तित्थोगाली पइन्नय }
{ २१५ एवं तु मए भणिओ, रातीणं वंससंभवो जाव । जावउ दुप्पसहो विय, एत्तो वोच्छामि सुयहाणि ६९७ (एवं तु मया भणितः, राज्ञां वंशसंभवः यावत् । यावत्तु दुःप्रसहोऽपि च, इतः वक्ष्यामि श्रुत हानिम् ।)
इस प्रकार मैंने (नये) राजन्य वंश के उद्भव के सम्बन्ध में कहा । अब मैं इस अवसर्पिणी काल के अन्ति आचार्य दुःप्रसह तक होने वाली श्रुत शास्त्र की हानि का उल्लेख करूंगा ।६६७। चउसट्ठी वरिसेहि, णिव्याण गयस्स जिणवरिंदस्स । साहूण केवलीणं, वोछित्ति जंबुणामंमि ।६९८ । (चतुष्षष्टिवः, निर्वाणगतस्य जिनवरेन्द्रस्य । साधूनां केवलीनां, व्युच्छित्तिः जम्बुनाम्नि ) . भगवान् महावीर के निर्वाणानन्तर ६४ वर्ष व्यतीत हो जाने पर जम्बू नामक केवली के मोक्षगमन के साथ ही केवलज्ञानी साधुओं का लोप हो जायगा---अर्थात् केवलज्ञान भरतादि दश क्षेत्रों में विलुप्त हो जायगा।६६८॥ मणपरमोहि पुलाए, आहारग खवग उवसमेकप्पे । संजमतिय-केवली-सिज्झणा य, जंबुमि वोच्छिन्ना ।६९९। (मनः परमावधि पुलाकाः, आहारक क्षपक उपशमेकल्पाः । संयमत्रिक-केवलिनः सिद्धना च, जम्बुनि व्युत्च्छिन्नाः ।)
मनःपर्यवज्ञान. परमावधिज्ञान, पुलाकलब्धि, आहारक शरीर, क्षपक श्रेणी उपशमश्रणी, जिनकल्प, संयमत्रिक...अर्थात् परिहारविशुद्धि, सूक्ष्म संपराय और यथाख्यात नामक तीन प्रकार के चारित्र. केवली अर्थात् केवलज्ञान और मुक्तिगमन -- इन दश विशिष्ट आध्यात्मिक शक्तियों का जम्ब के निर्वाण के साथ ही विच्छेद हो गया।६६६। नवसुविधासे सेवं, मण परमोही पुलागमादीणं । समकालं वोछओ, तित्थोगालीए निद्दिट्ठो ।७००।