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________________ २१४ । [ तित्थोगाली पइन्नय (देव इव श्रमणसंघः, पूजिष्यते सर्वनगरग्रामेषु । उनाः विंशति सहस्राः अनुपमः भविष्यति सत्कारः ।) सभी नगरों एवं ग्रामों में देवोपम श्रमणसंध की पूजा होगी। कुछ ही न्यून बीस हजार वर्षों तक श्रमण संघ का अपूर्व सत्कार होगा ।६६३। एवं चिय वासेसु, नवसुवि होहीति सक्काउ राया। एगसमएण दसवि सक्कीसाणाओ काहिति ।६९४। (एवं चैव वर्षेसु. नवस्वपि भविष्यन्ति शकाः राजानः । एक समयेन दशाऽपि शकेशा आज्ञां करिष्यन्ति ) इसी प्रकार ढाई द्वीप के शेष चार भरत और पांच ऐरवत.. इन नौ ही क्षत्रों में शक राजा होंगे। ये दशों हो शक गजा एक ही समय में अपनी राजाज्ञा चलायेंगे अर्थात् शासन करेंगे ।६६४। दत्तो वि महाराया, जिणाययण मंडियं वसुमतिं तु । कारेहि सो सिग्धं, दिवसे दिवसे य सक्कारं ६९५। (दत्तोऽपि महाराजा, जिनायतन-मंडितं वसुमतीं तु । कारयिष्यति स शीघं , दिवसे दिवसे च सत्कारम् ) ___ महाराजा दत्त भी शीघ्र ही पृथ्वी को जिनायतनों (जिनालयों) से मण्डित कर श्रमण संघ का दिन प्रतिदिन सत्कार करेगा ।६६५। तस्स सुओ जिय सत्तू , तस्सविय सुतो उ मेघघोसोत्ति । अन्नोन्नरायवंसा, जाव विमलवाहणो शया ।६९६। (तस्य सुतः जितशत्रुः, तस्यापि च सुतस्तु मेघघोष इति । अन्योऽन्यराजवंशाः, यावत्-विमलवाहनः राजा ।) राजा दत्त का पुत्र होगा राजा जितशत्रु और जिनशत्र का पुत्र राजा मेधघोष । इस प्रकार राजा विमलवाहन तक अन्यान्य राजवंश होंगे।६६६।
SR No.002452
Book TitleTitthogali Painnaya
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKalyanvijay
PublisherShwetambar Jain Sangh
Publication Year
Total Pages408
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size24 MB
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