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________________ तित्थोगाली पइन्नय ] तस्य पुत्तं दत्तं इंदो अणुसासिऊण जणमज्झे । 2 काऊण पाडि हेरें, गच्छइ समणे पणामि ऊण ।६९०। ( तस्य च पुत्रं दत्तं इन्द्रोऽनुशासयित्वा जनमध्ये | कृत्वा प्रातिहार्य, गच्छति श्रमणान् प्रणमयित्वा ।) इन्द्र समस्त जन समूह के समक्ष मृत कल्की के पुत्र दत्त को आवश्यक निर्देश देकर राज्य का अधिकारी बनायेगा । तदनन्तर इन्द्र श्रमण संघ को प्रणाम कर सुर लोक की ओर लौट जायगा । ६६०। भद्द धीतिवेला परिगयस्स, सज्झाय सलिलपुन्नस्स । अक्खोब्भस्स भगवओ, संघसमुदस्स रु ६स्स । ६९९ । (भद्र ं धृतिवेला - परिगतस्य, स्वाध्यायसलिलपूर्णस्य । अक्षोभस्य भगवतः, संघसमुद्रस्य रुंदस्य ।) [ २१३ धैर्य की अनतिक्रमणीय वेला ( मर्यादा - सीमा) में विराजमान स्वाध्याय रूपी अपार जलराशि से पूर्ण, किसी भी दशा में कभी क्षुब्ध न होने वाले भगवत्स्वरूप महान् संघ समुद्र का कल्याण हो । ६६१। दवा पव्त्रयं, इंदाणुमयं सधम्प्रजणिय च । सव्वंमि भरवासे, होही समणाण सक्कारो | ६९२ । (इन्द्रभुजा-प्रवर्तितं, इन्द्रानुमतं सद्धर्मजनितं च । सर्वस्मिन् भारतवर्षे, भविष्यति श्रमणानां सत्कारः । ) इन्द्र की भुजाओं द्वारा प्रवर्तित अर्थात् श्रमणों को हाथ जोड़ कर प्रमाण करते हुए इन्द्र को देख कर, इस प्रकार इन्द्र द्वारा अनुमत सद्धर्म की प्रतिष्ठा के फलस्वरूप सम्पूर्ण भारतवर्ष में श्रमणों का सत्कार होगा ।६१२। देवोव्वसमण संघ, पुज्जिही सव्वनगरगामेसु । ऊणा वीस सहस्सा, अणोवमा होहीति सक्कारो | ६९३ |
SR No.002452
Book TitleTitthogali Painnaya
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKalyanvijay
PublisherShwetambar Jain Sangh
Publication Year
Total Pages408
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size24 MB
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