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________________ २१२ ] | तिस्थोगाली पइन्नय कायोत्सर्ग की मुद्रा में स्थित साधुत्रों के चित्त की एकाग्रता से शक्र का सिंहासन प्रकम्पित हुआ । अवधिज्ञान के उपयोग से सब स्थिति को जान कर देवेन्द्र शक्र तत्काल वहां आता है । ६८७ | सो दाहिण लोगपती, धम्माणुमती अहम्मबुढमतिं । जिणत्रयण ( सारण ) पडिकुड, नासीहिति खिप्पमेव तयं । ६८८ | ( स दक्षिण लोकपतिः, धर्मानुमतिः अधर्म वृद्धमतिम् । : जिनशासन प्रतिक्र ुष्टं नाशयिष्यति क्षिप्रमेव तकम् 1) धर्म के अनुकूल मति वाला वह दक्षिण लोक का स्वामी देवराज अधर्मपूर्ण आचरण करने वाले, जिन शासन के द्रोही उस कल्की राज का तत्काल नाश करेगा । ६८८ छासीतीउ समाओ उग्गो उगाए दंडनीतीए । भोत ं गच्छइ निहणं, निव्वाण सहस्स दो पुणे | ६८९ । ( पडसीतिस्तु समाः, उग्र उग्रथा दण्डनीत्या । भुक्त्वा गच्छति निधनं निर्वाण सहस्र द्व े पूर्णे 1) 1 निर्वारण पश्चात् दो हजार वर्ष पूर्ण होने पर ८६ वर्षों तक प्रति कठोर दंडनीति द्वारा अत्युग्र राजतन्त्र का उपभोग करने के पश्चात् (वीर) निर्वाण के दो हजार (२०००) वर्ष पूर्ण होने पर वह चतुर्मुख कल्की मृत्यु के मुख में चला गया । ६८६ । १ चतुविंशत्यधिक षट्सत संख्यकायाः गाथाया उल्लेखानुसारेण १३२३ तमे वीर निर्वाण संवत्सरे कल्किन; जन्म, चतुस्त्रिशत्षट्शत संख्यकायां गाथायां च १३४१ तम: वीर निर्धारण संवत्सरस्तस्य राज्याभिषेककालः समुल्लि खित: । तथाहि एकोननवत्यधिक षट्शत संख्यकायाः गाथाया उल्लेखानुसारतश्च कल्किन: शासनकालः षटसीति वर्षमितो निर्दिष्टः । एवं हि तावत् १३२३+१८ + ८६, एतासां संख्यानां योगतः वीर निर्वारण संवत्सर: १४२७ तम एव कल्किनः निधन कालः सुनिश्चितो भवति । तथ्यानामेतेषां पर्यालोचने गाथायामस्य कैल्किनः निधनकालः यदि २००० तम: वीर निर्वाण संवत्सरः निर्दिष्टस्तद्धि तावत् त्रुटिपूर्णोऽसमीचीनश्च स्पष्टत प्रतिभाति ।
SR No.002452
Book TitleTitthogali Painnaya
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKalyanvijay
PublisherShwetambar Jain Sangh
Publication Year
Total Pages408
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size24 MB
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