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________________ २१० ] [ तित्थोगाली पइन्न उस समय भो कल्प और व्यवहार का धारक पंच महाव्रत रूपी संयम से संयत. तपस्वी, सूत्रार्थों का मर्मज्ञ और पर शान्त आज्ञादृष्टि नामक श्रमण ।६८०। वीरेण समाइट्ठो, तित्थोगालीए जुगप्पहाणोति । सासण उण्णति जणणो, आयरितो होहिति धीरो ।६८१ (वीरेण समादिष्टः, तीर्थोद्गाल्यां युगप्रधान इति । . . शासनोन्नतिजनकः, आचार्या भविष्यति धीरः ।) जिसे "तीर्थोद्गारी" में श्रमण भगवान महावीर ने युगप्रधान बताया है, जिन-शासन की उन्नति करने वाला अति धोर आचार्य होगा।६८१॥ पाडिवतो नामेण, अणगारो तह य सुविहिया समणा । दुक्खपरिमोयणट्ठा, छट्ठट्ठम तवे काहिति ।६८२। (प्रातीपत्रतः नाम्ना, अणगारस्तथा च सुविहिताः श्रमणाः । दुःखपरि मोचनार्थं , षष्टाष्टम तपांसि करिष्यन्ति ।) प्रातिपद नामक एक अनगार तथा सुविहित परम्परा के श्रमण होंगे। वे जन्म-मरण के दुःख से मुक्त होने के लिये षष्ठम (बेला) और अष्टम (तेला) आदि तप करेंगे।६८२। . रोसेण मिसिमिसंतो, सो कइ दीहं तहेव अच्छीय । अह नगरदेवयाउ, अप्पिणिया बेत्ति वेसीया ६८३। (रोषेण मिसमिसायन् स कति [चित्] दिवसान् तथैव आस्थितः । अथ नगरदेवता तु, आत्मीया ब्रुवति आवेशिता ।) क्रोधातिरेक से दांतों को किटकिटाता हुआ वह कतिपय दिनों तक उसी प्रकार श्रमण संघ को संताप देता रहेगा। इस पर नगर की अधिष्ठात्री देवी आवेश भरे स्वर में कहेगी-६८३। किं तूरसि मरिउ, जे निस्संसं किं वाहसे समणसंघ सव्वं तं पज्जत्तं, नणु कइ दीहं पडिच्छाहि ।६८४।
SR No.002452
Book TitleTitthogali Painnaya
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKalyanvijay
PublisherShwetambar Jain Sangh
Publication Year
Total Pages408
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size24 MB
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