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________________ २०६ । [ तित्थोगाली पइन्नय सामिय सणंकुमारा, सरणं ता होहि समणसंघस्स । इणमो वेयावच्चं, भणमाणाणं न वट्टिहिति ६६६। (स्वामिक सनत्कुमार, शरणं तावत् भव श्रमणसंघस्य । इदं वैयावृत्यं, भणमाणानां न वर्तिष्यते ।) "यो सनत्कुमार देवलोक के स्वामी ! तुम श्रमण संघ के शरण्य बनो, यह श्रमण संघ की सेवा का अवसर है ' -इस प्रकार कहते हुए श्रमण बाढ़ में नहीं बहेंगे ।६६६। अलोइयं नीसल्ला, पच्चक्खाणेसु धणियमुज्जंता । उत्थपिहिति समणी, गंगाए अग्गवेगेणं ।६६७) (आलोचित निश्शल्या प्रत्याख्यानेषु धणिय (अतिशय) मुद्यच्छन्तः । उत्थाप्स्यन्ते श्रमण्यः, गंगाया अग्रवेगेन ।) आलोचना कर निश्शल्य बनी हुई तथा प्रत्याख्यान करने में पूर्णतः उद्यत श्रमणियां गंगा के तीव्र वेग द्वारा पानी से बाहर पहुँचा दी जायेंगी।६६७। काओवि साहुणीओ, उवगरण धणिय राग पडिबद्धा । कलुण पलोयणि यातो, वसहि सहियातो बुझंति ।६६८। (काचिदपि साध्व्य, उपकरणघनितरागप्रतिबद्धाः । करुण प्रलोकनिकास्ता, वसति सहितास्ततः वाद्यन्ते ।) अपने उपकरणों के प्रति प्रगाढ अनुराग में बंधी हुई कतिपय श्रमणियां करुण दृष्टि से अपने उपकरणों को देखती हुई वसतियों सहित उस बाढ़ में डूब जायेंगो ।६६८। सामिय सणंकुमारा, सरणं ता होहि समणसंघस्स । इणमो वेयावच्चं, भणमाणीणं न वट्टिहिति ।६६९। (स्वामिन् सनत्कुमार, शरणं तावत् भव श्रमणसंघस्य । इदं वैयावृत्यं, भणमानीनां न वर्तिष्यति ।)
SR No.002452
Book TitleTitthogali Painnaya
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKalyanvijay
PublisherShwetambar Jain Sangh
Publication Year
Total Pages408
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size24 MB
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