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तित्थोगालो पइन्नय ]
[ २०५ तं दाणि समणुबद्ध, सत्तरस राति दिवाई वासिहिति । गंगा सोणापसरो, उव्वचइ तेण वेगेण ६६२। (तदिदानीं समनुबद्ध, सप्तदश रात्रिदिनानि वर्षिष्यति । गंगा सोणा प्रसर, उद्वर्तयति तेन वेगेन ।
निरन्तर सत्रह दिन और सत्रह रात तक निरन्तर मूसलधार वृष्टि होगी । उससे गंगा, सोणा और सर में प्रलयंकर बाढ़ आवेगी ।६६२। गंगाए वेगेण य, सोणस्स य दुद्धरेण सोतेणं । .. तेणं अह सव्वातो, महंता बुझिही पुरवरं रम्मं ।६६३। (गंगायाः वेगेन च, शोणायाश्च दुर्द्ध रेण खोतेन । तेनाथ सर्वतो मथयता, बूडिष्यति पुरवरं रम्यम् ।) - गंगा के अति तीव्र तथा सोणा के प्रबल स्रोत से यह अति सुरम्य एवं विशाल नगर पूरी तरह डूब जायगा।६६३। आलोइय गयसल्ला, पच्चक्खाणे सु धणिय मुज्जुत्ता । उत्थप्पहिति साहु, गंगाए अग्गवेगेणं ।६६४। (आलोचित गत-शल्याः, प्रत्याख्यानेषु धणिय [अत्यन्त] मुधु क्ताः। उत्थाप्स्यन्ते साधवः, गंगाया अग्रवेगेन ।)
आलोचना कर निश्शल्य बने तथा प्रत्याख्यान में पूरे यत्न के साथ संलग्न साधु-साध्वी गण गंगा के तीव्र वेग द्वारा बाढ़ से बाहर फेंक दिये जायेंगे ।६६४। के इत्थ साहुबग्गा, उवगरणे धणिय-राग पडिबद्धा । कलुणाई पलोइंता, वसही सहियाओ बुझंति ।६६५। (केचिदत्र साधुवर्गाः, उपकरणे धणिय (अतिशय) राग प्रतिबद्धाः । करुणानि प्रलोकयन्तः, वसति सहिता वाह्यन्ते ।)
उस समय अपने उपकरणों के प्रति प्रगाढ़ राग में बंधे हुए कतिपय साधु सकरुण दृष्टि से देखते हुए वसतिसहित उस बाढ़ में बह जायेंगे ।६६५।