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[ तित्थोगाली पइन्नय
हमारी कृपा से क्या होगा? (यह कह कर श्रमण-संघ अपने स्थान को लौट जायगा) यह सब कुछ हो जाने पर भी बहुत से साधु वहीं (पाटलिपुत्र में ही) ठहरे रहेंगे। तदनन्तर कई दिनों और रातों तक निरन्तर घोर वर्षा होगी।६५८। दिव्वंतरिक्ख भोमा, तइया होहिंति नगरनासाय । उप्पाया उ महल्ला, सुसमण समणीण पीडकरा ६५९।। (दिव्यान्तरिक्षभौमाः, तदा भवन्ति नगरनाशाय [भविष्यन्ति । उत्पातास्तु महान्तः, सुश्रमणश्रमणीनां पीडाकराः ।)
नगर के विनाश तथा श्रमणों के लिये भावी पीड़ा के सूचक अनेक दिव्य एवं बड़े बड़े उत्पात आकाशे में तथा पृथ्वी पर होंगे।६५९। संवच्छर पारणए, होहि असिवंति तो ततो निति । सुत्तत्थं कुव्वंता, अइसयमादीहिं नाऊण ।६६०। (संवत्सर पारणके, भविष्यति अशिवं इति तान् तत नयन्ति । सूत्रार्थ कुर्वन्तः अतिशयादिभित्विा ।)
संवत्सर (वर्ष) की समाप्ति पर अनेक अपशकुन होंगे। उन्हें देख कर और ज्ञानातिशय से भावी को जान कर सूत्रों को तथा सूत्रों के अर्थ (नियुक्ति चूणि वृत्ति आदि) को साधु गण वहां से बाहर यत्नपूर्वक ले जाते हैं :६६०। गंतु पि न चायंति, केइ उवगरणवसहिपडिबद्धा । केइ सावग निस्सा केइ पुण जं भविस्सा उ ६६१। (गन्तुमपि न शक्नुवन्ति, केचिदुपकरणवसति प्रतिबद्धाः । केचित् श्रावकनिस्राः केचित्पुनः यत्भविष्यास्तु ।)
अनेक साधु उपकरणों एवं वसति के राग में आबद्ध, अनेक साधु अपने श्रावकवर्ग के मोह पाश में बधे तथा कतिपय साधु--जो होना है, वह हो कर रहेगा--यह कह कर पाटलिपुत्र को छोड़ अन्यत्र जा ही न सकेंगे।६६११