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________________ २०२ । [ तित्थोगाली पइन्नय नामक राजा समस्त साधु-संन्यासियों को एकत्र कर कहेगा--- "तुम सब लोग मुझे कर दो" ।६५१॥ रुद्धोय समणसंघो, अच्छिहीति सेसया य पासंडा । सव्वे दाहिंति करं, सहिरण्णसुवण्णिया जत्था ।६५२। (रुद्धश्च श्रमण संघः, स्थास्यति शेषकाश्च पाषण्डा । सर्वे दास्यन्ति करं, सहिरण्य सुवर्णिकाः यत्र ।) ___कर देना स्वीकार न करने की दशा में श्रमण संघ उस राजा द्वारा अवरुद्ध हो वहीं रुका रहेगा। अन्य धर्मों के साधु संन्यासी तथा अन्य सभी पाखण्डी उस राजा को अपने-अपने पास के स्वर्ण में से कर के रूप में स्वर्ण देंगे ६५२। . . सव्वे य कुंपासंडे, मोयावेहि बला सलिंगाई । अइ तिव्वलोहघत्थो, समणे वि अभिहवेसीय ।६५३। . (सर्वांश्च कुपासण्डान्, मोचापयिष्यति बलात् स्वलिंगानि । अतितीव्रलोभग्रस्तः श्रमणानपि अभिद्रविष्यति च ।) ___ वह अन्य सब पाखण्डियों से बलपूर्वक उनका वेष उतरवा लेगा और प्रतीव तीव्र लोभ से अभिभूत हो वह श्रमणों को भी संताप देगा।६५३॥ वोच्छंति य मयहरगा, अम्हं दायद्दव्वं म किंचित्थ । जं नाम तुम्हलुब्भा, करेहि तं दायसी राय ।६५४। (वक्ष्यन्ति च महत्तरका, अस्माकं दातव्यं द्रव्यं न किंचिदत्र । यत्-नाम त्वं लोभात् करै आदायसि राजन् । ___इस पर महत्तर संघ-स्थविर उसे कहेंगे -' हमारे पास देने के लिये ऐसी कोई वस्तु या द्रव्य नहीं है जिसे तुम लोभ के वशीभूत हो कर द्वारा लेना चाहते हो" १६५४। रोसेण सूसयंतो, सो कइ वि दिणा तहेव अच्छिही। अह नगर देवया तं, अप्पणिया' भणिही राय ।६५५ १. अप्पणिया दुरप्पा/उ. २०/
SR No.002452
Book TitleTitthogali Painnaya
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKalyanvijay
PublisherShwetambar Jain Sangh
Publication Year
Total Pages408
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size24 MB
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