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[ तित्थोगालो पइन्नय तोर्थ कर प्रभु महावीर ने इस अवश्यंभावी दोष (अनिष्ट) को बहुत पहले ही (केवलज्ञान द्वारा) देख और जान लिया था।६४४॥ अण्णेवि अत्थि देसा, लहुलहु ताई तो अवक्कमिमो । एसा वि हु अणुकंपइ, गावीरूवेण अहि उत्था ६४५ (अन्येऽपि संति देशाः, शीघौं शीघ तानितोऽवक्रामामः । एषापि खल्वनुकम्पते, गावी रूपेणाभ्युत्था )
राजमार्गों पर गाय के रूप में उपस्थित यह (दिव्य शक्ति) हम पर अनुकम्पा कर रही है। अतः हमें शीघ्र ही इस प्रदेश को त्याग कर अन्य प्रदेशों में चले जाना चाहिए ।६४५। गावीए उवसग्गा, जिणवर वयणं च जे सुणेहिति । गच्छंति अण्ण देसं. तहवि य बहवे न गच्छंति ६४६। गाव्या उपमर्गान् . जिनवर वचनं च ये अण्वन्ति (अशण्वन्) । गच्छन्त्यन्यदेशं, तथापि च बहवो न गच्छन्ति ।
गाय द्वारा उपस्थित किये गये उपसर्गों और इनकी पूर्व सूचना के रूप में पहले ही से प्रभु महावीर द्वारा कहे गये वचनों की बात सुन कर कतिपय साधु तो अन्य प्रान्तों की ओर प्रस्थान कर देंगे परन्तु अधिकांश साधु वहीं रहेंगे ।६४६। गंगा सोणुवसगां जिणवरवयणं च जे सुणेहिंति । गच्छंति अण्णदेसं तहवि य बहवे न गच्छति ।।६४७ (गंगा सोनोपसगं, जिनवर वचनं च ये श्रवन्ति । गच्छन्त्यन्यदेशं, तथापि च बहवो न गच्छंति ।
गंगा ओर सोन के उपसर्गों एवं तद्विषयक जिनेन्द्र देव के वचनों को जो सुनेंगे वे अन्य प्रदेशों में चले जायेंगे, किन्तु फिर भी बहत से साधु वहां से अन्य प्रान्तों की ओर प्रयाण न कर वहीं यथावत् रहेंगे।६४७। किं अम्ह पलाएण, भिक्खस्म किमिच्छयाइ लभते । एवं ति जंपमाणा, तह वि य बहुया न गच्छंति ।६४८।