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तित्थोगाली पइन्नय ।
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(नाम्ना लोणदेवी, गौरूपेण नाम अभ्युत्था । धरणीतलात् उद्भूता, द्रक्ष्यते शिलामयी गावी ।)
उस नगर को खोदते समय पृथ्वीतल से खड़ी अवस्था में शिलामयी गाय के रूप में लोणा नामक देवी प्रकट हुई दृष्टिगोचर होगो ।६४१॥ सा किर तइया गावी, होइणं रायमग्गमोतिण्णा ।। साहुजणं हिंडतं, पिच्छही सुस्सुयायंती ।६४२।। (सा किल तदा गावी, भूत्वा राजमार्गमवतीण।। साधुजनं हिण्डन्तं, प्रक्षयिष्यति सुस्सुकायंती )
वह गाय राजमार्ग में आकर इधर-उधर आते-जाते साधुओं को देखते ही उनकी ओर सुसियायेगी (सूसाड़ करेगी) १६४२। ते भिण्णभिक्ख भायण, विलोलिया भिण्णकोप्पनिडाला ।) भिक्खं पि हु समणगणा. न चयंति हु हिंडिउ नयरे ।६४३ (ते भिन्नभिक्षाभाजन-विलोलितभिन्नकूर्णरललाटाः भिक्षामपि श्रमणगणा. न शक्नुवन्ति हिण्डितु नगरे ) ____ वह गाय भिक्षार्थ भ्रमण करत हुए साधुओं को अपने सींगों के आघात से नीचे गिरा दगी जिससे उनके भिक्षा-पात्र टूट-फूट जायेंगे तथा उनकी कोनियां व ललाड़ क्षत विक्षत होंगे और इस प्रकार उस गाय के डर से साधु नगर में भिक्षाथं भी नहीं निकल पायेंगे । ६४३। वोच्छत्तिय मयहरगो, आयरिय परंपरागयं तच्चं । एस अणागय दोसो, चिरदिठो बद्धगाणेण ।६४४। (वक्ष्यति च महत्तरकः आचार्य परम्परागतं तथ्यम् । एष अनागत दोषश्चिरदृष्टो वर्द्ध मानेन ।)
___ इस प्रकार की आश्चर्यजनक एवं अनिष्टकारी घटनाओं को दख कर महत्तर (आचार्य अथवा संघस्थविर) आचार्य-परम्परागत तथ्यपूर्ण श्र ति की साक्षी देते हुए कहेंगे कि त्रिकालदर्शी