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________________ तित्थोगालो पइन्नय ] [ १६७ उस समय राजाओं एवं जनपदों की संख्या बहुत हो जायगी। उस दुर्बुद्धि का जन्म होते ही ये सब अनिष्ट होंगे, यह निश्चित समझना चाहिए ।६३३। अट्ठारस य कुमारो, वरिसाडामरितो होति तत्तियं कालं । अस्सेसयम्मि काले, भरहे राया अच्छंतस्स ।६३४। (अष्टादश च कुमारः. वर्षाडम्बरितः भवति तावतिकं कालम् । अवशेष काले, भरते राजत्वेन स्थितस्य ।) - वह १८ वर्ष का होगा तब तक कुमार रहेगा। तदनतर वह अनेक वर्षों के अपने पूरे जीवन काल तक भारत का राजा रहेगा ।६३४। जं एवं वर नयरं, पाटलिपुत्तं तु विस्सुए लोए । एत्थं होही राया, चउम्मुहो नाम नामेण ।६३५। (यदेतद् वरनगरं, पाटलिपुत्रं तु विश्रुतं लोके । अत्र भविष्यति राजा, चतुर्मुखो नाम नाम्ना ।) ... यह जो जगत्प्रसिद्ध पाटलिपुत्र नामक नगर है, यहां चतुर्मुख नामक राजा होगा।६३५ सो अविणय पज्जतो, अण्ण नरिंदं तणमिव गणतो । नगरं आहिडतो. पेच्छी ही पंच थूभे उ ६३६। (सोऽविनयं पर्याप्तः, अन्य नरेन्द्रान् तृणमिव गणयन् । नगरमाहिण्डयन्, प्रोक्षिष्यति पञ्च स्तूपान् तु ) वह इतना अधिक अविनीत अर्थात् अभिमानी होगा कि दूसरे सब राजाओं को तरण तुल्य समझेगा। नगर के सभी भागों में घूमता हुमा एक दिन वह पांच स्तूपों को देखेगा ।६३६। पुट्ठा य वेंति मणुया, नंदो राया चिरं इहं आसि । बलितो अत्थ समिद्धो, रूव समिद्धो जस समिद्धो ६३७ (पृष्टाश्च ब्रुवन्ति मनुष्याः, नन्दो राजा चिरमत्रासीत् । बलितोऽर्थसमृद्धः, रूपसमृद्धः यशसमृद्धः ।)
SR No.002452
Book TitleTitthogali Painnaya
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKalyanvijay
PublisherShwetambar Jain Sangh
Publication Year
Total Pages408
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size24 MB
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