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________________ १६६ ] | तित्थोगाली पइन्नय सिज्झति य पाडा, चोरेहिं य जणपया विलुप्पंति । होहि तदाणिं गामा, केवल संपाहमेचावि (केवल सण्णाह भीतावि) ६३० (सिध्यन्ति च पापंडाः, चौरेश्च जनपदाः विलुप्यन्ते । भविष्यन्ति तदानीं ग्रामाः, केवलं सण्णाह भीतापि [वै] :) पाखण्डी अपने आपको सिद्ध घोषित करेंगे। जनपद आये दिन चोरों द्वारा लूटे जायेंगे। गाँव लुटेरों के प्रहारों से सदा भयभीत रहेंगे । ६३० । एत्थ किर मज्झसे, पविरंजमण एस नाम देसेसु । हयगय गो महिसाणं, कहिंचि किच्छाहि उवलंभो । ६३१ | ( or fee मध्यदेशे, परिज्ज मनुष्येषु नाम देशेषु । हय-गज - गौ-महिषीणां कुत्रचित् कृच्छ र्हि उपलम्भ: 1 ) " यहां और मध्यवर्ती प्रदेश में लोगों के इस प्रकार प्रमदित (लुठित सन्त्रस्त) किये जाने पर घोड़ों, हाथी, गायें और भैंसे कठिनता से कहीं-कहीं ही देखने में आयेंगे । ६३१० चोरा रायकुल भयं, गंधारसा विखज्जिहिति अणुसमयं । दुभिकखमणावुट्टीय, नाम पलिय एव मज्झी ही ६३२। (चौर - राजकुलभ, गन्धाः रसाः क्षयिष्यन्त्यनुसमयम् । दुर्भिक्षमनावृष्टिश्च नाम पलितमेवमधीतिः । ) , लोगों को प्रतिक्षण चोरों एवं राज्य की ओर से भय रहेगा। पृथ्वी के गन्ध-रसादि गुरण निरन्तर क्षीण होते जायेंगे । अनावृष्टि से तथा दुर्भिक्षों के पड़ने से लोगों में चिन्ता व्याप्त रहेगी । ६३२ | रातीणं किर होइ य, बहुला य जणवया तया । जम्मंत तस्स एते, निच्छिय भावा मुणेयव्त्रा । ६३३ | ( राज्ञां किल भविष्यन्ति, बहुलाश्च जनपदाः तदा । जन्मतस्तस्यैते निश्चिताः भावाः मुनेतव्याः ।) ,,
SR No.002452
Book TitleTitthogali Painnaya
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKalyanvijay
PublisherShwetambar Jain Sangh
Publication Year
Total Pages408
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size24 MB
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