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तित्थोगाली पइन्नय ]
[ १६५ - जन्म स्थान में सूर्य के विष्णुदेवता में शनिश्चर के योग के साथ शुक्र के भौम (बुध) द्वारा और बृहस्पति के चन्द्र द्वारा प्रहत होने पर ।६२६॥ ससिमरत्थमणमिय, समागमेतित्थ एग पखंमि । सत्चरिसय चरक पमद्दएयधूम धूमए उ केउंमि ।६२७। (शशि सूर्ययोरस्तमने च समागमे तिथौ [तीथे] एक पक्षे । सप्तर्षयचक्रप्रमर्दके, च धूम्र धूम्रके तु केतौ ।)
एक हो तिथि और एक ही पक्ष में चन्द्र और सूर्य--दोनों के अस्तमान के समागम में सप्तर्षि मण्डल के धूम्र धूम्रक केतु द्वारा प्रमदित किये जाने पर ।६२७।। (तइया भुवणस्स पडणं) तइया भुवणं पडणस्स, जम्मनगरीए नगरी रामकण्हाणं । घोरं जणक्खयकर, पडिबोहदिणे य चिण्हस्स ।६२८॥ (तदा भवनानां पतनेन, जन्मनगर्या रामकृष्णयोः । घोरं जनक्षयकर, प्रतिबोधदिने च विष्णोः ।)
तब बलराम और कृष्ण की जन्मनगरी मथुरा में विष्णु के उत्थान (देवोत्थान की कार्तिक शुक्ला एकादशी) के दिन घोर धनजन क्षयकारी भवनों के भूमिसात् होने अर्थात् गिरने के दिन ।६२८। बहुकोहमाणमाया, लोभपसत्थस्स तस्स जम्ममि । संघ पुण हेसेही, गावीरूवेण अहिउन्हा ६२९। (बहुकोध-मान-माया-लोभ प्रसक्तस्य तस्य जन्मनि । संघं पुनः हसिस्यति, गौरूपेण अध्युष्णा ।)
अत्यधिक क्रोध-मान-माया और लोभ में प्रसक्त उस दुष्ट बुद्धि का जन्म होने पर कालान्तर में लोणा देवी...गौ का रूप धारण किये पथ पर खड़ी हो संघ को अपने सींगों से प्रताड़ित करेगी।६२६।