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तित्थोगाली पइन्नय )
. [ १६३ चौथे पारे के शेष अन्तिम समय में जो होगा, हुआ है अथवा होता है, उसे सुनिये ।६१८॥ अद्ध नवमा य मासा, तिण्णि य वासाइं होंति सेसाई। दुसमसुसमाएतो, नवसुवि खेत्तेसु सिद्धिगया [जिणिंदा] ।६१९। (अर्द्ध नवमाश्च मासा, त्रीणि च वर्षाणि भवन्ति शेषाणि । दुःषमसुषमायास्ततः, नवस्वपि क्षेत्रेषु सिद्धिं गताः [जिनेन्द्राः ।)
दुःषमा सुषम नामक चतुर्थ प्रारक की समाप्ति में जब तीन वर्ष और साढ़ा पाठ मास अवशिष्ट थे उस समय (जम्बूद्वीप के भरतक्षेत्र . की तरह) ढाई द्वीप शेष ६ ही क्षेत्रों में अन्तिम तीर्थ कर सिद्ध हुए।६१६। जं रयणी सिद्धिगो अरहातित्थंकरो महावीरो। तं रयणीमवंतीए अभिसित्तो पालओ राया ।६२०/ (यस्यां रजन्यां सिद्धिगतोऽहत्तीर्थंकरो महावीरः । तस्यां रजन्यामवन्त्यामभिषिक्तः पालकः राजा )
जिस रात्रि में चौवीसवें तीर्थंकर महावीर मोक्ष पधारे उस रात्रि में अवन्ती में पालक का राज्याभिषेक हुआ।६२०। पालगरण्णो सट्ठी, पणपन्न सयं वियाण पंदाणं । मरुयाणमट्ठमयं, तीसा पुण पूसमित्वाणं ।६२१।। (पालक राज्ञः षष्टी, पंचपंचाशच [च शतं विजानीहि नन्दानाम् । मौर्याणामष्ट [च] शतं, त्रिंशत् पुनः पुण्यमित्राणाम् ।)
____ भगवान महावीर के निर्वाण के पश्चात् पालक राजा का ६० वर्ष तक, नन्दों का १५५ वर्ष तक मौर्यो का १०८ वर्ष तक तथा पुष्यमित्रों का ३० वर्ष तक ।६२१।। बलमित्तभाणु मित्ता, सट्ठी चत्ता य होंति नहसेणे । गद्दभ सयमेगं पुण, पडिवन्नो तो सगो राया ।६२२। (बलमित्रभानुमित्रयोः, षष्टिः चत्वारिंशच्च भवन्ति नभसेने । गर्दभस्य शतमेकं पुनः, प्रतिपन्नः ततः शको राजा ।)