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[ तित्थोगालो पइन्नय एक वासुदेव पांचवीं नरक में, पाँच वासुदेव छठी नरक में, एक वासुदेव पाँचवीं नरक में, एक वासुदेव चौथो नरक में और अन्तिम वासुदेव कृष्ण तीसरी पृथ्वी में उत्पन्न हुए ।६१५। अट्ठतकडा रामा, एगोपुण बंभलोय कप्पंमि । उववन्नो तत्थ भोए, भोत्तु अयरोवम दसाएतो ।६१६। (अष्टान्तकृताः रामा; एकः पुनः ब्रह्मलोक कल्पे । . . उत्पन्नस्तत्र भोगान् भुक्त्वा अजरोपमदशायास्ततः ।)
आठ बलदेवों ने आठों कर्मों का अन्त किया-अर्थात् मोक्ष प्राप्त किया। एक बलदेव (नौवें तथा अन्तिम बलराम) ब्रह्म नामक पांचवें देवलोक में उत्पन्न हए। वहां वे दिव्य देव भोगों का उपभोग करने के पश्चात् ।६१६। तत्तोय चइत्ताणं, इहेव उस्सप्पिणीए भरहमि । भवसिद्धिओउ भयवं, सिज्झिसइ कण्ह तित्थंमि ।६१७) (ततश्च च्युत्वा, इहैव-उत्सर्पिण्यां भरते । भवसिद्धिकस्तु भगवान्, सेत्स्यति कृष्णतीर्थे ।)
एक भविक वे (नौवें बलदेव का जीव) ब्रह्मदेव लोक से च्यवन कर आगामी उत्सपिणी काल में इसी भरत क्षेत्र में श्री कृष्ण - अर्थात् तोर्थ कर भगवान् अमम के धर्मतीर्थ काल में सिद्ध-बुद्ध-मुक्त होंगे।६१७) तइए घरंमि एते, तिविट्ठ आदी य संठिया सव्वे । दुसम सुसमाए सेसे, जं होही तं निसामेह ।६१८। (तृतीये गृहे एते, त्रिपृष्ठाद्याश्च संस्थिताः सर्वे ।। दुःषम सुषमायां शेषो, यत् भविष्यति तत् निशामयत ।)
उपरि चचित (वाम से दक्षिण २७ और ऊपर से नोचे ५ घरों वाले) यन्त्र की तृतीय पंक्ति में त्रिपृष्ठ आदि सब वासदेवों का उल्लेख है। (उनका कथन किया गया) अब दुःषमा-सुषम नामक