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तित्थोगाली पइन्नय |
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त्रिपृष्ठ, द्विपृष्ठ स्वयंभू, पुरुषोत्तम और पुरुषसिंह ये प्रथम से पंचम वासुदेव (केशव) क्रमशः अपने अपने समय में हुए ग्यारहव से पन्द्रहवें तीर्थंकर अर्थात् श्र ेयांसनाथ, वासुपूज्य, विमलनाथ, अनन्तनाथ और धर्मनाथ की सेवा में उपस्थित हो उन्हें वन्दन करते हैं । ६१२ ।
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अर-मल्लि अंतरे, दोन्नि केसवा पुरिस पुंडरीयदत्ता | सुन्वय नमीण मज्झमि अट्टमो, कण्ह नेर्मिमि । ६१३ । (अर - मल्यन्तरे, द्वौ केशव पुरुषपुण्डरीकदत्तौ । सुव्रतनमयोर्मध्ये, अष्टमः कृष्णः नेमौ ।)
अठारहवें तोर्थंकर अरनाथ और १६ वें तीर्थंकर मल्लिनाथ के अन्तर काल में पुरुष पुण्डरीक और दत्त नामक छठे और सातवें ये दो वासुदेव, बीसवें तीर्थंकर मुनि सुव्रत तथा २१ वें तीर्थ कर नमिनाथ के अन्तर काल में नारायण नामक आठवें वासुदेव और बावीसवें तीर्थंकर के समय नौवें वासुदेव श्री कृष्ण हुए । ६१३|
अनियाणकडा रामा, सव्वे विय केसवा नियाणकडा | उगामी रामा, केसवसच्चे अहोगामी ६१४ (अनिदानकृताः रामाः सर्वेऽपि च केशवाः निदानकृताः । ऊर्ध्वगामिनो रामाः केशवा सर्वेऽधोगामिनः )
बलदेव पूर्वजन्म में निदान (तपस्या के प्रतिफल के रूप में ऐश्वर्य को आकांक्षा) नहीं करते जब कि सभी वासुदेव अपने पूर्वभव में निदान करते हैं। सभी बलदव ऊर्ध्वगति अर्थात् मोक्ष अथवा स्वर्ग में तथा सभी वासुदेव अधो गति अर्थात् नरक में जाते हैं । ६१४ ।
एक्को य सत्ताए, पंच य छट्टीए पंचमी एगो |
एगो य चउत्थीए, कण्हो पुण तच्च पुढवीए । ६१५।
( एकश्च सप्तमायां, पंच च षष्टयां पंचम्यामेकः । एकश्च चतुर्थायां कृष्णः पुनः तृतीया - पृथिव्याम् ।)
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