SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 212
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ तित्योगाली पइन्नय [ १८५ वासुदेव त्रिपृष्ठ और हलो प्रवल को सेवा में वृषभों के समान राज्यधुरी को वहन करने में धीर, मुकुटबद्ध एवं नागराज के समान प्रचण्ड १६,००० (सोलह हजार) राजा नित्य रहते थे ॥५६२३॥ बायालीसं लक्खा, हेयाण रहगयवराण पडिपुण्णा । अट्ठय देवसहस्सा, अभिउग्गा सबकज्जेसु १५९३। (द्वाचत्वारिंशल्लक्षाः हेयानां रथ-गजवराणां प्रतिपूर्णाः । अष्टौ च देव सहस्रा, आभियोग्याः सर्वकार्येषु ।) उनके पास सभी आवश्यक सज्जाओं से सजे हुए बयालीस लाख घोड़े, उतने ही रय तथा उतने ही श्रेष्ठ गजराज थे। उनके अभीप्सित सभी कार्यों को सम्पन्न करने हेतु ८००० (आठ हजार) देव सदा उनकी आज्ञा का पालन करने में तत्पर रहते थे ।। ५६३।। अडयाला कोडीउ पाइक्कनराण रणसमत्थाणं । सोलस साहस्सीउ, सजणवयाणं पुरवराणं ५९४। (अष्ट चत्वारिंशत् कोट्यस्तु पदातिनराणां रणसमर्थानाम् । षोडस साहस्रीस्तु, सजनपदानां पुरवराणाम् ।) त्रिपृष्ठ तथा अचल को पदाति सेना में ४८ करोड़ रणकुशलरणसमर्थ सैनिक थे। उनके शासन के अन्तर्गत १६ हजार जनपद और १६ हजार ही विशाल नगर थे ॥५६४॥ पण्णासं विज्जाहर, नगराण सजणवयाण रंमाणं । पव्वंतरालवासी, नागाय फणुग्गधर मउडा ।५९५। (पञ्चाशत् विद्याधरनगराणां सजनपदानां रम्याणाम् । पर्वतान्तरालवासिनः नागाश्च फणोग्रधरमुकुटाः ।) त्रिखण्डाधिपति त्रिपृष्ठ वासुदेव और अचल हलधर के अधीन विद्याधरों के जन पदों सहित ५० बड़े-बड़े नगर और पर्वत के अन्तराल में निवास करने वाले, उग्रफरणयुक्त मुकुट को धारण करने वाले ५० नागराज थे ॥५६५।।
SR No.002452
Book TitleTitthogali Painnaya
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKalyanvijay
PublisherShwetambar Jain Sangh
Publication Year
Total Pages408
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size24 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy