________________
१८४ ]
[ तित्थोगालो पइन्नय सुनन्द अथवा नन्दित नामक मूसल की अचल बलदेव धारण करते हैं । अचल का वह मूसल टिड्डीदल के समान अपार एवं विशाल सेनाओं को भयभीत कर किंकर्तव्यविमूढ बना देने वाला, सौभ अर्थात् लोहमय गगन विहारी नगराकार विमानों बड़े-बड़े अभद्य नगरों को विचूर्णित करने में सिद्धहस्त और वज्र सार का बना हुआ था ॥५८६।। सव्वोउ पंच मालं, कुसुमासव लोल छप्प (य) विउलं। . मणिकुंडलं च वामं, कुबेरघरसारं आरामं । ५९०। (सर्वतु पंचमालं, कुसुमासव लोल षट्पद विपुलम् । मणि कुंडलं च वामं, कुबर गृहसार आरामम् ।)
अचल के वक्षस्थल पर सभी ऋतुओं के पांच वर्ण के फूलों की माला थी, जिस पर फूलों के रस को चूसने के लोभी चपल भ्रमर मंडराते रहते थे। अचल के कानों में धन कुबेर के धनागार के सभी आभूषणों में सारभूत मनोहर मणिकुण्डलों की जोड़ी थी ।।१०। अचलस्स वि अमर परिग्गहाई, एयाई पवररयणाई। सत्तू ण अजियाई, समरगुण पहाणगेयाई ।५९१।. (अचलस्यापि अमर परिग्रहाणि, एतानि प्रवररत्नानि । शत्रणामजितानि, समरगुण प्रधान गेयानि ।)
अचल बलदेव के पास भी शत्रुओं द्वारा अजेय, समर के सभो प्रधान गुणों से गेय अर्थात् युक्त ये (उपरि लिखित) उत्कृष्ट रत्न थे॥५६१॥ बद्धमउडाण निच्च, रज्जधुरुव्वहणधीरवसभाणां । भोइण नरिंदाभाणं, सोलसराती सहस्साई ।५९२। (बद्धमुकुटानां नित्यं, राज्यधुरोद्वहनधीरवृषभाणां । भोगिन् नरेन्द्राभानां, षोडश राजसहखाणि ।)