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________________ तित्थोगाली पइन्नय ] [ १८१ प्रथम बलदेव अचल भी प्रजापति के ही पुत्र थे। उनका जन्म प्रजापति की बड़ी रानी भद्रा की कुक्षि से हुआ था। त्रिपृष्ठ और अचल---दोनों भाई महाबलशाली शत्रु सैन्यों का मथन करने वाले थे।५८०। अयल तिविठू दुन्निवि, संगामे अस्सग्गीव रायाणं । हंतूण सव्व-दाहिण, दाहिण भरहं अइ जिणंति ।५८१। (अचल त्रिपृष्ठौ द्वावपि, संग्रामेऽश्वग्रीव राजानं । . हत्वा सर्वदक्षिण भरतमतिजयन्ति ।) अचल और त्रिपृष्ठ ने संग्राम में भरतार्द्ध के अधिपति प्रति वासुदेव अश्वग्रीव को मार कर सम्पूर्ण दक्षिण भरत पर विजय प्राप्त की ।५८१ उप्पण्णरयण विहवा, कोडि सिलाए बलं तुलेऊणं । अडूढभरहाहिसेयं, अयलो यति विठ्ठणो पत्ता ।५८२। (उत्पन्नरत्न विभवाः, कोटि शिलायां बलं तोलयित्वा । अर्द्ध भरताभिषेकं, अचलश्च त्रिपृष्ठश्च प्राप्तौ ।) वासुदेव तथा बलदेवोचित महावैभवशाली रत्नों के उत्पन्न होने पर भरत क्षेत्र के तीनों खण्डों पर विजय वैजयन्ती फहरा कोटिक शिला पर उन्होंने अपने बल को तोला और तदनन्तर वे दोनों अर्द्ध भरताधिपति वासुदेव और बलदेव के पद पर अभिषिक्त हुए ।५८२। चक्कं सुदरिसणं से, संखोविय पंचयण नामोति । नंदय नामो य आमी, रितु सोणिय मंडितो आसी ।५८३॥ (चक्र सुदर्शनं तस्य; शंखोऽपि पाञ्चजन्य नामेति । नन्दक नामा च आसीत्, रिपुशोणित मंडित असी ।) उस त्रिपृष्ठ वासुदेव के पास सुदर्शन चक्र. पाञ्चजन्य शंख, शत्रुओं के रक्त से रंजित नन्दक नाम की तलवार थी।५८३।
SR No.002452
Book TitleTitthogali Painnaya
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKalyanvijay
PublisherShwetambar Jain Sangh
Publication Year
Total Pages408
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size24 MB
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