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________________ १८० ] [ तित्योगाली पइन्नय तिविठू य दुविट्ट, य, सयंभु पुरिसुत्तमे पुरिससीहे । तह पुरिस-पुंडरीए, दत्ते नारायणे कण्हे ।५७७। (त्रिपृष्ठश्च द्विपृष्ठश्च, स्वयंभूः पुरुषोत्तमः पुरुषसिंहः । तथा पुरुष-पुण्डरीकः, दत्तः नारायणः कृष्णः ।) त्रिपृष्ठ, द्विपृष्ठ, स्वयंभू, पुरुषोत्तम, पुरुषसिंह, पुरुष पुण्डरीक, दत्त, नारायण और कृष्ण---ये ६ वासुदेव (प्रवर्तमान अवसपिणी काल में) भारतवर्ष में हुए ।५७७। अयले विजए भद्द, सुप्पभे य सुदंसणे । आणंद नंदण पउमे, रामे यावि अपच्छिमे ।५७८। (अचलः विजयः भद्रः, सुप्रभश्च सुदर्शनः । आनन्दः नन्दनः पद्मः, रामश्चाप्यपश्चिमः ।) अचल, विजय, भद्र, सुप्रभ, सुदर्शन, आनन्द, नन्दन, पद्म और अन्तिम नौवें राम (बलराम)---ये ६ बलदेव हुए ।५७८। पुत्तो पयावइस्स, मियावई कुच्छंसि संभवो भयवं । नामेण विय-तिविठ्ठ., आदी आसी दसाराणं ।५७९।। (पुत्रः प्रजापतेः, मृगावती कुक्षौ संभवः भगवान् । नाम्नापि च त्रिपृष्ठः आदिरासीत् दशार्हाणाम् ।) महाराज प्रजापति के पुत्र, मृगावती की कुक्षि से उत्पन्न भगवान् (प्रभु महावीर का जीव होने के कारण संभवतः यहां महासम्मान सूचक भगवं शब्द का प्रयोग त्रिपृष्ठ के लिये किया गया है) नाम से भी जो त्रिपृष्ठ थे वे दशाों के आदि पुरुष थे ।५७६। पुत्तो पयावतिस्स, भद्दा[या]अयलो वि कुच्छि संभूतो । गरुय पडिवक्ख महणा, तिविट्ठ अयलो ति दो विजणा ।५८०। (पुत्रः प्रजापतेः, भद्राया अचलोऽपि कुक्षि संभूतः । गुरु प्रतिपक्षमथनौ, त्रिपष्ठाचला विति द्वावपि जनौ ।)
SR No.002452
Book TitleTitthogali Painnaya
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKalyanvijay
PublisherShwetambar Jain Sangh
Publication Year
Total Pages408
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size24 MB
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