________________
तित्योगाली पइन्नय ]
[ १७६
मुणिसुब्वये महपउमो, नमिमि हरिसेण होइ बोधव्यो । नमि नेमि अंतरे जयो, अरिट्ठ पासंतरे बंभो ॥५७४। (मुनिसुव्रते महापद्मः, नमौ हरिषेणो-भवति बोधव्यः । नमिनेम्यन्तरे जय, अरिष्टपार्थान्तरे ब्रह्म ।)
बीसवें तीर्थंकर मनिसूत्रत के समय में नौवें चक्रवर्ती महापद्म, इकवीसवें तीर्थ कर नमिनाथ के समय में दशवें चक्रवर्ती हरिषेण, इकवीसवें तीर्थ कर नमिनाथ तथा बावीसवें तीर्थंकर अरिष्टनेमि के अन्तरकाल में ग्यारहवें चक्री जय और बावीसवें तीर्थंकर अरिष्टनेमि तथा तेवीसवें तीर्थ कर पार्श्वनाथ के अन्तराल में बारहवें चक्रवर्ती ब्रह्मदत्त हुए ।५७४. अठेव गया मोक्खं, सुहुमो बंभो य सत्तमि पुढविं । मघवं सणंकुमारो, सणंकुमारं गया कप्पं ।५७५ । (अष्टावेव गताः मोक्षं, सुभूमो ब्रह्मश्च सप्तमां पृथिवीम् । मघवासनत्कुमारी, सनत्कुमारं गताः कल्पम् ।) ___ आठ चक्रवर्ती-- (भरत, सगर, शान्तिनाथ कुथुनाथ, अरनाथ, महापद्म, हरिषेण और जय) मोक्ष में गये। सुभूम और ब्रह्मदत्त ये दो चक्री सातवीं पृथ्वी (नरक) में गये। मघवा और सनत्कुमार ये दो चक्रवर्ती सनत्कुमार नामक तीसरे कल्प (स्वर्ग) में गये ५७५। छक्खण्ड भरहसामी, बारस चक्कीउ तेउ निद्दिठा । एत्तो परं तु वोच्छं, भरहद्धनराहिवा सव्वो ।५७६। (षट् खण्ड भरतस्वामिनः द्वादशचक्रिणस्ते तु निर्दिष्टाः । इतः परं तु वक्ष्यामि, भरतार्द्ध नराधिपान् सर्वान् ।)
भरत क्षेत्र के छहों खण्डों के स्वामी बारह चक्रवर्तियों के सम्बन्ध में मैंने निर्देश किया। अब आगे मैं अद्ध भरत अर्थात् भरत क्षेत्र के तीन खण्डों के नरेन्द्र ६ वासुदेवों के सम्बन्ध में कथन करूगा ।५७६।