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[ तित्थोगाली पइन्नय
भरत, सगर, मघवा नृपशार्दूल सनत्कुमार, शान्तिनाथ, कुथुनाथ, अरनाथ, कुरुवंशी सुभूम--५७० । नवमो य महापउमो, हरिसेणो चेव राय सदूदूलो । जय नामो य नरवती, बारसमो बंभदत्तो य ।५७१। (नवमश्च महा पद्मः, हरिषेणश्चैव राजशार्दूलः । जय नामा च नर पतिः, द्वादशमः ब्रह्मदत्तश्च ।)
नौवें चक्रवर्ती महापद्म, नृपशार्दूल हरिषेण नृपति जय और बारहवें चक्री ब्रह्मदत्त---ये १२ चक्रवर्ती हुए ।५७१। उसमे भरहो अजिए, सगरो मघवं सणंकुमारो य ।। धम्मस्स य संतिस्स य, जिणंतरे चक्कवट्टि दुगं ।५७२। (ऋषभे भरतोऽजिते सगरो, मघवासनत्कुमारौ च । धर्मस्य च शान्तेश्च, जिनान्तरे चक्रवर्ति द्विकम् ।)
प्रथम तीर्थकर भगवान् ऋषभदेव के समय में भरत तथा द्वितीय चक्रवर्ती सगर हुए। तीसरे चक्रवर्ती मघवा और चौथे चक्रवर्ती सनत्कुमार ये दो चक्री पन्द्रहवें तीर्थ कर धर्मनाथ तथा सोलहवें तीर्थ कर शान्तिनाथ के अन्तराल में हुए ।५७२। संती कुथू य अरो, अरहंता चेव चक्कवट्टी य । अर मल्लि अंतरंमिउ, हवइ सुभूमो य कोरव्यो ।५७३। (शान्तिः कुथुश्च अरः, अर्हन्ताश्चैव. चक्रवर्तिनश्च । अरमल्लि-अंतरे तु, भवति सुभूमश्च कौरव्यः ।)
शान्तिनाथ, कुथुनाथ और अरनाथ ये तीनों क्रमशः सोलहवें, सत्रहवें एवं अठारहवें तीर्थकर होने के साथ साथ क्रमशः पांचवें, छ? तथा सातवें चक्रवर्ती भी थे। तीर्थकर एवं चको भगवान् अरनाथ और १६ वें तीर्थ कर मल्लिाथ के अन्तर काल में आठवें चक्रवर्ती कौरव्य सुभूम हुए ।५७३।