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तित्थोगाली पइन्नय ]
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नागेसु उसभपिया, सेसाणं सत्तण्हं ति ईसाणे । अट्ठ य सणंकुमारे, माहिदे अट्ठ बोधव्वा ।५६८। (नागेषु ऋषभपिता, शेषानां सप्तानां तु ईशाने । अष्टौ च सनत्कुमारे, माहेन्द्रऽष्टौ बोधव्याः ।)
। भगवान् ऋषभदेव के पिता नाभिकुलकर भवनपति देवों की नागकुमार नामक द्वितीय निकाय के देवों में, अजितनाथ से चन्द्रप्रभ तक सात तोर्थङ्करों के पिता ईशान नामक दूसरे देवलोक में सुविधिनाथ से शान्तिनाथ तक-इन आठ तीर्थकरों के पिता सनत्कुमार नामक तृतीय देव लोक में, तथा शेष आठ (कुन्थुनाथ से महावीर तक) तीर्थ करों के पिता माहेन्द्र नामक चतुर्थ स्वर्ग में उत्पन्न हुएजानना चाहिये ।५६८।
(स्पष्टीकरण :--अनुयोग द्वार और त्रिषष्टिशलाका पुरुष चरित्र में अजितनाथ के पिता महाराज जित शत्रु का मोक्ष गमन म ना है जब कि प्रवचन सारोद्धार आदि ग्रन्थों में इनका ईशान स्वर्ग में उत्पन्न होना माना है।) तित्थंकर पढमघरे, भणिया वत्तव्यया समासेणं । एत्तो घरंमि बीए, बोच्छं चक्कीण उद्देशं ।५६९। (तीर्थंकर प्रथम गृहे, भणिता वक्तव्यता समासेन । इतः गृहे द्वितीये, वक्ष्यामि चक्रीणामुद्दे शम् ।) ___वाम से दक्षिण की ओर २७ घरों तथा ऊपर से नीचे पांच पंक्तियों में २७ घरों से बने उपर्युक्त तीर्थ कर चक्री और केशवों के यन्त्र में तीर्थंकरों के प्रथम घ (कोष्ठकों) की वक्तव्यता का संक्ष पतः कथन किया गया। अब चक्रवतियों के सम्बन्ध में कथन करूगा ।५६६। भरहो सगरो मघवं, सणंकुमारो य राय सद्द लो। संती कुंथु य अरो, हवइ सुभूमो य कोरव्यो ।५७०। (भरतः सगरो मघवा, सनत्कुमारश्च राजशार्दूलः । शान्तिः कुथुश्च अरः, भवति सुभूमश्च कौरव्यः ।)