SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 203
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ १७६ ] [ तित्थोगाली पइन्नय भरत क्षेत्र में भगवान वासुपूज्य चम्पानगरी में तथा ऐरवत क्षेत्र में भगवान् श्रेयांसनाथ नाग नगरी में सिद्ध गति को प्राप्त हुए ।५६४। हरिवर कुलनंदिकरो, उज्जते निव्वुओ जिणो नेमी । एरवए अग्गिसेणो, सिद्धि गतो वित्तकडंमि ५६५। (हरिवंशकुलनन्दिकरः, उज्जयन्ते निर्वृ तो जिनो नेमी। ऐरवते अग्निषेणः, सिद्धिं गतः वित्तकटे ।) (भरत क्षेत्र में) श्रेष्ठ हरिवंश को आनन्दित करने वाले अरिष्टनेमि उज्जयंत पर्वत पर तथा ऐवत क्षेत्र में तीर्थङ्कर अग्निषेण चित्रकूट पर्वत पर सिद्ध गति को प्राप्त हुए ।५६५। पावाए वद्धमाणो, सिद्धि गतो भारइंमि वासंमि । एरवए वारिसेणो, सिद्धो कमलुज्जलु पुरीए ।५६६। । (पावायां[अपापायां] वर्द्धमानः, सिद्धिं गाः भागते वर्षे । .. ऐरवते वारिषणः, सिद्धः कमलुज्वलपुर्याम् ।) भरत क्षत्र में भगवान महावोर पावा में मोक्ष पधारे। एरवत क्षेत्र में तीर्थंकर वारिसेन कमलोज्वल पुरी में सिद्ध गति को प्राप्त हुए ।५६६। अट्ठण्हं जणणीओ, तित्थगराणं तु होति सिद्धाउ । अट्ठ य सणं कुमारे, माहिंदे अट्ठबोधव्वा ।५ ६७। (अष्टानां जनन्यः, तीर्थकराणां तु भवन्ति सिद्धास्तु । अष्टौ च सनत्कुमारे, माहेन्द्र अष्ट बोद्धव्याः ।) . भगवान् ऋषभदेव से चन्द्रप्रभ पर्यन्त प्रथम पाठ तीर्थङ्करों की माताए सिद्ध गति को प्राप्त हुईं। सुविधिनाथ से शान्तिनाथ तक आठ तीर्थङ्करों की माताए सनत्कुमार नामक तृतीय लोक में तथा शेष कुन्थुनाथ से महावीर तक अन्तिम आठ तीर्थङ्करों की जननियां माहेन्द्र नामक चतुर्थ देवलोक में उत्पन्न हुई ।५६७।
SR No.002452
Book TitleTitthogali Painnaya
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKalyanvijay
PublisherShwetambar Jain Sangh
Publication Year
Total Pages408
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size24 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy