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________________ इस ग्रन्थ के विहंगमावलोकन से ही प्रत्येक पाठक को विश्वास हो जायगा कि यह श्वेताम्बर परम्परा का ही ग्रंथ है न कि किसी अन्य परम्परा का । यह श्वेताम्बर परम्परा का ही ग्रंथ है, इस तथ्य को सिद्ध करने वाले प्रमाण इस ग्रन्थ में स्थान-स्थान पर एक नहीं अनेक भरे पड़े हैं। उदाहरण के तौर पर हण्डावसर्पिणी काल में होने वाले १० पाश्चर्यों का इसमें विशद विवेचन किया गया है। इन दस प्राश्चर्यो का उल्लेख करने वाली जो गाथा श्वेताम्बर परम्परा के मान्य ग्रन्थों में उपलब्ध होती है, वह उसी रूप में इस ग्रन्थ में विद्यमान है। प्रागम साहित्य के प्रध्ये तानों में से प्राज अधिकांश को यही धारणा है कि दश प्राश्चर्य केवल जम्बद्वीप के भरतक्षेत्र में प्रवर्तमान अवसर्पिणी काल की चोवोसी के काल में ही हुए। पर प्रस्तुत ग्रन्थ तित्थोगाली पइन्नय में स्पष्ट उल्लेख है कि ये दश प्राश्चर्य प्रवर्तमान हुण्डावपिणी काल में ढाई द्वीप के ५ भरत और पांच ऐरवत-- इन दशों क्षेत्रों में हुई दशों ही चौवीसियों के काल में हुए और उसके परिणामस्वरूप जिस समय भरत क्षेत्र में १९वें तीर्थंकर भगवान् मल्लिनाथ स्त्रीरूप में उत्पन्न हुए उसी समय अन्य ४ भरत और ५ ऐरवत क्षेत्रों में ये भी १६ वें तीर्थंकर स्त्री रूप में ही उत्पन्न हुए। . जहां तक इस ग्रन्थ के प्रणयनकाल का प्रश्न है--इस समस्त ग्रन्थ में प्रतिपादित तथ्यों का गहराई से चिन्तन मनन करने पर भी इस प्रश्न का कोई स्पष्ट प्रामाणिक अथवा सर्वमान्य उत्तर नहीं मिलता। इस ग्रन्थ की गाथा संख्या ८७१ में "निच्चानिच्च सियवादे" यह अन्तिम चरण और ८७२ पौर ८७३ में क्रमशः "जो सियवायं भासति" तथा "जो सियवायं निदंति" इन दो प्रथम चरणों को देखकर अनेक विद्वान् इस प्रन्थ के प्रणता का समय अनुमानित करने का प्रयास करते आये हैं पर मेरी स्वल्प बुद्धि के अनुसार इस प्रकार की अटकलबाजी से कोई सुनिश्चित सर्वमान्य निर्णय .प्रथवा निष्कर्ष नहीं निकलने वाला है जिस "सियवाय" (स्याद्वाद) शब्द के प्राधार पर अनुमान की दौड़ लगाई जा रही है वह स्वयं ही विवादास्पद है । सुनिश्चित रूप से प्रमाणपुररस्सर प्राज कोई विद्वान् यह नहीं कह सकता कि अमुक समय में "स्याद्वाद" शब्द का जन्म जैन वांग्मय में हुमा । जब स्याद्वाद शब्द के प्रादुर्भाव का समय ही अपने आप में निश्चित है तो उसके प्राधार पर अन्य तथ्य का समय किस प्रकार निकाला जा सकता है। अनिर्णीत और अनिश्चित तथ्य को प्राधार मान कर किसी बात
SR No.002452
Book TitleTitthogali Painnaya
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKalyanvijay
PublisherShwetambar Jain Sangh
Publication Year
Total Pages408
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size24 MB
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