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________________ तित्थोगाली पइन्नय ] भर अरिनेमी, एरवए अग्गिसेण जिणचंदो | 1 दसवि जिणा चित्ताहिं, सिद्धि गया पुव्वरतंमि । ५४६ | (भरते अरिष्टनेमी, ऐरवते अग्निषेण जिनचन्द्रः | दशाऽपि जनाः चित्रायां सिद्धिं गताः पूर्वरात्रौ 1) 1 भरत क्षेत्र में अरिष्टनेमि और ऐरवत क्षेत्र में अग्निसेन - इन दश तीर्थकरों ने पूर्व रात्रि में चन्द्र का चित्रा नक्षत्र के साथ योग होने पर सिद्ध गति प्राप्त को । ५४६ । पासो य भरहवासे, एरवए अग्गिदत्त [ उत्त] जिणचंदो । दसव बिसाहा जोगे, सिद्धि गया पुव्वरतंमि । ५४७ । (पार्श्वश्च भरतवर्षे, ऐरवते अग्निदत्त - जिनचन्द्रः । दशाऽपि विशाखा योगे, सिद्धि गताः पूर्वरात्रौ 1) [ १७१ भरत क्षेत्र में पार्श्वनाथ और ऐरवत क्षेत्र में ग्रग्निदत्त - इन दश तीर्थंकरों ने पूर्व रात्रि की वेला में चन्द्र का विशाखा नक्षत्र के साथ योग होने पर सिद्धि गमन किया । ५४७ एवमसीति जिनिंदा, अडमयड्डाण निवियकम्मा | सुविखेत्ते सेए, सिद्धि गया पुव्वरतंमि ५४८ । ( एवमशीतिः जिनेन्द्राः, अष्ट मदस्थान निष्ठापित कर्माणः । दशष्वपि क्षेत्रेष्वेते, सिद्धि गताः पूर्वरात्रौ । इस प्रकार पांच भरत और पांच ऐरवत क्षेत्रों के इस अवसर्पिणी काल के ८० तीर्थंकर मठों मदस्थानों के समस्त कर्मों को निश्शेष कर पूर्व रात्रि की वेला में सिद्ध गति को प्राप्त हुए । ५४८ । धम्मो य भरहवासे, वसंत जिणो य एरवय वासे । दसव जिणा पुस्सेणं, सिद्धि गया अवररत मि | ५४९। (धर्मश्च भरतवर्षे, उपशान्तजिनश्चैरवतवर्षे । दशाऽपि जनाः पुष्येण सिद्धि गताः अपररात्रौ । ) ,
SR No.002452
Book TitleTitthogali Painnaya
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKalyanvijay
PublisherShwetambar Jain Sangh
Publication Year
Total Pages408
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size24 MB
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