________________
१७२ ]
[ तित्थोगाली पइन्नय
भरत क्षेत्र में धर्मनाथ और ऐरवत क्षेत्र में उपशान्त -- ये दश तोर्थंकर चन्द्र का पुष्य नक्षत्र के साथ योग होने पर पश्चिम रात्रि में सिद्ध गति में गये ५४६।
अर जिणवरो य भरहे, अइपास जिणो य एरवयवासे । रेव जोगे दसमी, सिद्धि गया अवररत मि । ५५० । ( अर जिनवरश्च भरते, अतिपार्श्व जिनश्चैरवतवर्षे रेवतीयोगे दशमी, सिद्धिं गता अपररात्रौ ।)
भरत क्षेत्र में अरनाथ और ऐरवत क्षेत्र में प्रतिपार्श्व -- ये दश तोर्थंकर चन्द्र के साथ रेवती नक्षत्र का योग होने पर अपर रात्रि के परार्द्ध में मोक्ष पधारे । ५५०
नमि जिणचन्दो भरहे, एरवए सामकोट्ठ जिणचंदो । अस्सिणिजोगे दसवि, सिद्धि गया अवररत मि । ५५१ । ( नमिजिनचन्द्रः भरते, ऐखते श्यामकोष्ठ जिनचन्द्रः | अश्विनीयोगे दशाऽपि सिद्धिं गता अपर रात्रौ )
1
भरत क्षेत्र में नमिनाथ और ऐरवत क्षेत्र में श्यांमकोष्ठ - ये दश तीर्थ कर चन्द्र और अश्विनी नक्षत्र का योग होने पर रात्रि के परार्द्ध में सिद्ध हुए । ५५१ |
भर य वद्धमाणो, एरवए वारिसेण जिणचंदो |
1
दसवि य साती जोगे, सिद्धि गया अवररत मि । ५५२। ( भरते च वर्द्धमान, ऐखते वारिषेणजिनचन्द्रः । दशाऽपि च स्वातियोगे, सिद्धिं गता अपररात्रौ ।)
भरत क्षेत्र में वर्द्धमान और ऐरवत में वरिषेण - ये दश तीर्थंकर पर रात्रि के समय चन्द्र का स्वाति नक्षत्र के साथ योग होने पर सिद्धि में गये । ५५२ ।
एते चत्तालीसं दस विवासेसु खीणसंसारा ।
सव्वे ते केवलिणो, सिद्धि गया अवरतंमि । ५५३ |