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(शान्तिश्च भरतवर्षे देवते दीर्घासन - जिनचन्द्रः । भरणी योगे दशाऽपि, सिद्धिं गताः पूर्वरात्रौ । )
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[ तित्योगाली पइन्नय
भरत क्षेत्र में शान्तिनाथ और ऐरवत' क्षेत्र में दीर्घासन --- ये दश तीर्थंकर भरणी नक्षत्र के साथ चन्द्रमा का योग होने पर पूर्व - रात्रि में निर्वाण को प्राप्त हुए । ५४२ ।
कुथू य भरहवासे, एरवमि य महाहि लोगबलो । कित्तिय जोगे दसवि, सिद्धि गया पुव्वरतंमि । ५४३ | ( कुथुश्च भरतवर्षे, ऐरवते च महा हि लोकवलः । कृत्तिकायोगे दशाऽपि, सिद्धिं गताः पूर्वरात्रौ ।)
भरत क्षेत्र में कुन्थुनाथ और ऐरवत क्षेत्र में महाहि लोकबल--- इन दश तीर्थंकरों ने चन्द्र का कृतिका नक्षत्र के साथ योग होने पर पूर्व रात्रि में सिद्ध गति प्राप्त की । ५४३ | मल्लिजिनिंदो भरहे, मरुदेवी जिणो य एवए वासे । रेव जोगे दसवि, सिद्धि गया पुव्वर मि | ५४४ | (मल्लिजिनेन्द्र : भरते, मरुदेवी जिनश्चचैरवते वर्षे । रेवतीयोगे दशाऽपि, सिद्धिं गताः पूर्वरात्रौ ।)
भरत क्षेत्र में मल्लिनाथ ने और ऐरवत क्षेत्र में मरुदेवी --- इन दश तीर्थंकरों ने चन्द्रमा का रेवती नक्षत्र के साथ योग होने पर रात्रि के पूर्व भाग में सिद्ध गति प्राप्त की । ५४४
मुणि सुव्य भरहे, एरवयंमि य धरो [वरो] जिणवरिंदो | सवणेण दसजिनिंदा, सिद्धि गया पुव्वरतंमि । ५४५ ।
( मुनि सुव्रतश्च भरते ऐरवते च धरः [वरः ] जिनवरेन्द्रः । श्रवणेन दशजिनेन्द्राः सिद्धि गताः पूर्वरात्रौ ।)
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मुनि सुव्रत ने भरत में और घर नामक जिनेन्द्र ने ऐरवत क्षेत्र में - इस प्रकार दश तीर्थकरों ने श्रवण नक्षत्र के योग में, पूर्व रात्रि में सिद्धि प्राप्त की । ५४५ |