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________________ तित्थोगाली पइन्नय ] [ १६६ तीर्थङ्कर चन्द्र का श्रवण नक्षत्र के साथ योग होने पर अपराल में सिद्धगति को प्राप्त हुए ।५३८। एते चत्तालीसं. अट्ठमयठाणे निट्टवियकम्मा । दससुवि वासेसेवं, सिद्धि गया अवर सूरम्मि ।५३९। (एते चत्वारिंशत् . अष्टमदस्थाने निष्ठापितकर्माणः । दशष्वपि वर्षेष्वेवं, सिद्धिं गता अपरसूर्ये ।) दशों ही क्षेत्रों में ये चालीस तीर्थ कर इस प्रकार आठों मदस्थानों में समस्त कर्मों को समूल नष्ट कर अपराल वेला में सिद्ध गति को प्राप्त हुए .५३६। विमलोय भरहवासे, एरवए सीहसेण जिणचंदो । उत्तरभद्दव दसवि, सिद्धिं गया पुनरत्तमि ५४०। (विमलश्च भरतवर्षे. ऐरवते सिंहषेण जिनचन्द्रः । उत्तराभाद्रपदायां दशाऽपि. सिद्धिं गताः पूर्वरात्रौ ।) भरत क्षेत्र में विमलनाथ और ऐरवत क्षेत्र में सिंहसेन-ये दशों तीर्थकर चन्द्र का उत्तर भाद्रपदा नक्षत्र के साथ योग होने पर पूर्वरात्रि में सिद्ध-बुद्ध-मुक्त हुए ।५४०। भरहे अणंतइ जिणो, एरवए असंजलो जिणवरिंदो । रेवइ जोगे दसवि, सिद्धि गया पुव्वरत्तमि ।५४१। (भरते अनन्त जिन; ऐरवते असंजल जिनवरेन्द्रः । रेवतीयोगे दशापि, सिद्धिं गताः पूर्वरात्रौ ।) भरत क्षेत्र में अनन्तनाथ और ऐरवत क्षेत्र में असंजल--ये दशों तीर्थंकर रेवती नक्षत्र के योग में पूर्वरात्रि को वेला में सिद्धगति को प्राप्त हुए ।५४१। . संती य भरहवासे, एरवए दीहासणो जिणचंदो।। भरणीजोगे दसवि, सिद्धि गया पुव्वरत्तमि ।५४२।
SR No.002452
Book TitleTitthogali Painnaya
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKalyanvijay
PublisherShwetambar Jain Sangh
Publication Year
Total Pages408
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size24 MB
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