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________________ १६८ ॥ । तित्थोगाली पइन्नय (भरते च संभवजिनः, ऐरवते अग्निषेण जिनचन्द्रः । मृगशीर्ष योगे दशाऽपि, सिद्धि गता अपरसूर्य ) भरत क्षेत्र में संभवनाथ तथा ऐरवत क्षेत्र में अग्निसेन - इन दशों तीर्थकरों ने अपराह्न की वेला में चन्द्र का मृगशिरा नक्षत्र के साथ योग होने पर सिद्ध गति प्राप्त की ।५३६।। *पउमप्पभो य भरहे, वयधारि जिणो य एरवयवासे । . दसवि मघा जोएणं, सिद्धि गया अवरसूरंमि ।५३७। (पद्मप्रभश्च भरते, वयधारीजिनश्चैरवतवर्षे । दशाऽपि मघा योगेन, सिद्धिं गता अपरसूर्ये ।) . भरत क्षेत्र में पद्मप्रभ और ऐरवत क्षेत्र में वयधारी (वयरधारीरवयधारी-खयधारी) इन दशों तीर्थङ्करों ने चन्द्र का मघा नक्षत्र के साथ योग होने पर अपराह्न की वेला में मुक्ति गमन किया ।५३७॥ सुविही य भरहवासे, एरवयंमि य सयाउ जिणचंदो । दसवि जिणा मूलेणं, सिद्धि गया अवर सूरंमि . ५३७) (सुविधिश्च भरतवर्षे, ऐरवते च शतायुः जिनचन्द्रः । दशापि जिनाः मूलेन, मिद्धिगता अपर सूर्ये ।). भरत क्षेत्र में सुविधिनाथ और ऐरवत क्षेत्र में शतायु- ये दशों तीर्थकर मूल नक्षत्र के योग में अपराह की वेला में सिद्ध गति को प्राप्त हुए ।५३७॥ भरहे य वासुपुज्जो, सेजसि जिणो य एरवयवासे । दसवि जिणा समणेणं सिद्धि गया अवरसूरम्मि ।५३८। (भरते च वासुपूज्यः श्रेयांस जिनश्च ऐरवतवर्षे । दशापि जिनाः श्रवणेन, सिद्धिगता अपरसूर्ये ।) भरत में वासुपूज्य तथा ऐरवत क्षेत्र में श्रेयांस- ये दशों १५३१ संख्याया: लेखने लिपिकेन या त्रुटि कृता सात्र परिमाजितव्य ।
SR No.002452
Book TitleTitthogali Painnaya
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKalyanvijay
PublisherShwetambar Jain Sangh
Publication Year
Total Pages408
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size24 MB
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