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तित्थोगाली पइन्नय ] .
[ १६७ तीर्थकरों ने चन्द्र का मघा नक्षत्र के साथ योग होने पर पूर्वाह्न की वेला में सिद्ध गति प्राप्त की ।५३२॥ भरहे य सुपास जिणो, एरवए सोमचंद जिण चंदो । दसवि विसाहाजोगे, सिद्धि गये पुचसूरंमि ।५३३। (भरते च सुपार्श्वजिन, एरवते सोमचन्द्र जिनचन्द्रः। दशोऽपि विषाखा योगे, सिद्धिं गताः पूर्वसूर्ये ।)
पांच भरत क्षेत्रों में सुपार्श्व और पांच ऐरवत क्षेत्रों में सोमचंद--ये दशों ही तीर्थकर पूर्वाल में चन्द्र का विशाखा नक्षत्र के साथ योग होने पर सिद्ध गति में गये ।५३३। चंदप्पभो य भरहे. एरवए दीहसेण जिणचंदो । दसवि अणुराह जोगे, सिद्धि गया पुबसूरंमि ५३४ (चन्द्रप्रभश्च भरते, ऐरवते दीर्घषेण जिनचन्द्रः । दशोऽप्यनुराधायोगे, सिद्धिं गताः पूर्व सूर्ये ।)
भरत क्षेत्र में चन्द्रप्रभ और ऐरवत क्षेत्र में दोघसेन--ये दशों तीर्थ कर चंद्र का अनुराधा नक्षत्र के साथ योग होने पर पूर्वाह्न की वेला में सिद्ध गति प्राप्त की।५३४।। • भरहे य सीयल जिणो, एरवए सुबइ जिणवरिंदो। दसवि दगदेवयाएं, सिद्धि गया पुव्वसूरंमि ।५३५। (भरते च शीतलजिनः, ऐरवते सुव्रतीजिनवरेन्द्रः । दशोऽपि उदक देवतायां, सिद्धिं गताः पूर्वसूयें ।)
भरत क्षेत्र में शीतलनाथ और ऐरवत क्षेत्र में सुव्रती इन दशों तीर्थकरों ने चन्द्र का उदक देवता अर्थात् पूर्वाषाढा नक्षत्र के साथ योग होने पर पर्वाल वेला में सिद्धिगमन किया ।५३५॥ भग्हे य संभवजिणो, एरवए अग्गिसेण जिणचंदो। मिगसिर जोगे दसवि, सिद्धि गया अवर सूरंमि ।५३६।