SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 193
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ १६६ } [ तित्थोगाली पइन्नय (ऋषभश्च भरतवर्षे, बाल चन्द्राननश्च एरवते । दशोऽपि चोत्तराषाढायां, पूर्व सूर्य सिद्धिं गताः ।) पांच भरत क्षेत्रों में ऋषभदेव और पांच ऐरवत क्षेत्रों में बालचन्द्रानन...ये दशों तीर्थकर पर्वाल की वेला में चन्द्र का उत्तराषाढ़ा नक्षत्र के साथ योग होने पर सिद्धगति को प्राप्त हुए ।५२८॥ अजिओ य भरहवासे, एरवयंमि सुचंद जिणचंदो । रोहिणि जोगे दस विय, सिद्धि गया पुव्वसूरंमि ।५२९। (अजितश्च भरतवर्षे, एरवते सुचन्द्र जिनचन्द्रः । रोहिणि योगे दशोऽपि च, सिद्धिं गताः पूर्वसूयें ।) पांच भरत क्षेत्रों में तीर्थ कर अजितनाथ और पांच ऐरवत क्षेत्रों में सचंद नाम के इन दशों ही तीर्थकरों ने चन्द्र का रोहिणी नक्षत्र के साथ योग होने पर पूर्वाह्न वेला में मुनि गमन किया ।५२६ । अभिनंदणो य भरहे, एग्वए य नदिसेण जिणचंदो । दसवि पुणव्यसु जोगे, सिद्धि गया पुबसूरंमि ।५३०। (अभिनन्दनश्च भरते. एरवने च नन्दिषेण जिनचन्द्रः । दशोऽपि पुनर्वसु योगे, सिद्धिं गताः पूर्वसूर्ये ।) पांच भरत क्षेत्रों के अभिनन्दन और पांच ऐरवत क्षेत्रों के नंदिषेण--इन दशों ही तीर्थंकरों ने चन्द्र का पुनर्वसु नक्षत्र के साथ योग होने पर पूर्वाह्ण वेला में सिद्धगति प्राप्त की ५३०? *सुमती य भरहवासे, इसिदिन्न जिणोअ एरवयवासे । दस वि जिणेउ मघाहि, सिद्धि गया पुव्वसर्गमि ५३२। (सुमतिश्च भरतवर्षे, ऋषिदत्त जितश्चैरवत वर्षे । दशोऽपि जिनास्तु मघायां, सिद्धिं गताः पूर्वसूर्ये ।) भरत क्षेत्र में सुमतिनाथ और ऐरवत में इसि दिन्न इन दशों * गाथासंख्यालेखने लिपिकेन कपि त्रुटि कृतेति प्रतिभाति ।
SR No.002452
Book TitleTitthogali Painnaya
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKalyanvijay
PublisherShwetambar Jain Sangh
Publication Year
Total Pages408
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size24 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy