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________________ तित्थोगाली पइन्नय । [ १६५ चउगभाग चउभागो तिण्णि, चउभाग पलियमेगं च । तिण्णेव चउभागा-चउत्थभागो य चउभागो ।५२६। (चतुर्भागः चतुर्भागः, त्रीणि चतुर्भागो पल्योपमेकस्य । त्रीण्येव चतुर्भागानां, चतुर्थभागः चतुर्भागः ।) चतुर्भाग- (१) सुविधिनाथ और शीतलनाथ के अन्तर काल में एक पल्योपम का चौथा भाग चतुर्भाग-(२) शीतलनाथ और श्रेयांसनाथ के अन्तराल के अन्तिम समय में एक पल्योपम का चौथा भाग (पाव पल्य), तिण्णि (तीन)---(३) श्रेयांसनाथ और वासुपूज्य के अन्तर के अन्तिम समय में एक पल्योपम के चार भागों में से तीन भाग अर्थात् पौन पल्य तक, च उभाग पलियमेगं च...(४) वासुपूज्य और विमलनाथ के अन्तराल के चरम समय में एक पल्योपम के चतुर्थ भाग अर्थात् पाव पल्य तक, तिणेव च उभागा-- (५) विमलनाथ और अनन्तनाथ के अन्तराल के अन्तिम भाग में पौन पल्य तक, च उत्थभागो...(६) अनन्तनाथ और धर्मनाथ के अन्तर काल के अन्तिम भाग में पाव पल्य तक, य च उभागो'...(७) और धर्मनाथ तथा शान्तिनाथ के अन्तराल अन्तिम भाग में पाव पल्य तक, इस प्रकार सात अन्तरालों में सब मिलाकर पौने तीन पल्योपम काल तक साधु-साध्वी श्रावक श्राविका रूप चतुर्विध तीर्थ का विच्छेद रहा १५२६ एवं तु मए भणिया जिणंतरा जिणवरिंद चंदाणं । एत्तो परं तु वोच्छं, सिद्धिगया जाए वेलाए ।५२७। (एवं तु मया भणिताः, जिनान्तराः जिनवरेन्द्र चन्द्राणाम् । इतः परं तु वक्ष्ये, सिद्धिं गता यस्यां वेलायाम् ।) इस प्रकार मैंने तीर्थङ्करों के अन्तर काल का वर्णन किया। अब मैं तीर्थ करों के मोक्षगमन की वेला का कथन करूगा ।५२७॥ उसभो य भरहवासे, बाल चंदाणणो य एरवए । दसवि य उत्तरसाढाहिं, पुत्रसूरंमि सिद्धिगया ।४२८।
SR No.002452
Book TitleTitthogali Painnaya
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKalyanvijay
PublisherShwetambar Jain Sangh
Publication Year
Total Pages408
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size24 MB
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