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________________ तित्थोगाली पइन्नय ] [ १५७ तइयसमापरिनिव्वुइ, निवास अद्धनवमासः सेसम्मि । उसभजिणराय खत्तिय, जिणवंस पगट्ट वणियाए' ।४९८। (तृतीयस मापरिनिर्वृ चौ, त्रिवर्षा नवमासशेष । ऋषभ जिनः राज-क्षत्रिय-जिनवंशप्रकटकः विनीतायाम् ।) सुषम दुःषमा नामक तीसरे प्रारक के समाप्त होने में जब ८४ लाख पूर्व तथा तीन वर्ष और साढ़े आठ मास अवशिष्ट थे, उस समय राजवंश, क्षत्रियवंश तथा जिनवश के प्रकटयिता प्रथम तीर्थंकर ऋषभदेव विनीता नगरी में उत्पन्न हुए ।४६८। उसभाओ उप्पण्णं, पाणासाकोडिसय सहस्सेहिं । । तं सागरोवमाणं, अजियजिणंदोविणीया उ' ।४९९। (ऋषभात् उत्पन्नं, पञ्चाशतकोटि शत सहस्रः। तत् सागरोपमैः. अजित जिनेन्द्रः विनितायाम् ।) _ ऋषभदेव से पचासलाख करोड़ सागरोपम व्यतीत हो जाने के पश्चात् विनीता नगरी में दूसरे तीर्थंकर अजितनाथ उत्पन्न हुए।४६६। तीसाए सागरोवम, कोडिसयसहस्स अन्तरुप्पण्णं । अजियाउ संभवजिणो, सावत्थीए वियाणा हि ।५००। (त्रिंशत् सागरोपमकोटिशतसहस्रानन्तरमुत्पन्नः । अजितात् संभवजिनः, श्रावस्त्यां विजानीहि ।) अजितनाथ से तीसलाख करोड़ सागर पश्चात् तीसरे तीर्थंकर भगवान् सभवनाथ श्रावस्ती में उत्पन्न हुए, यह जानना चाहिए ।५००। १ गाथा या अस्य श्चतुर्थचरणान्तिमाशोऽस्पष्टोऽशुद्धश्च लिपिकेन लिखितोऽ. तोऽष्मभिः सम्यगालोच्य शोध्य च लिखितोऽस्ति । प्रतौ तु एवंविधो पाठः-' जिणचस पगट्टवरिणयाए।" एतद्धि तावच्छास्त्रपरिपंथि, ग्रन्थस्यास्य सप्त शीत्यधिक त्रिंशत संख्यकाया; गाथ या अपि विरुद्धमेव । २ विनीताया अपरनामानि-अयोध्या, साकेत कोसला च ।
SR No.002452
Book TitleTitthogali Painnaya
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKalyanvijay
PublisherShwetambar Jain Sangh
Publication Year
Total Pages408
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size24 MB
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