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________________ १५६ ] [ तित्थोगाली पइन्नय (अष्टादश च सहस्राणि, शिष्यानामासीत् अरिष्टनेमिनः । कृष्णेन प्रण मितस्य, शिवासमुद्रयोः तनयस्य ।) महारानी शिवा और महाराज समुद्रविजय के नन्दन तथा कृष्ण वासुदेव के नमस्य बावीसवें तीर्थंकर अरिष्टनेमि के १८,००० (अठारह हजार) शिष्य थे ।४६४। सोलस साहस्सीओ, पास जिणिदस्स सीसपरिवारो । महियस्स पसेण इणा, सुयस्स वायससेणाणं ।४९५। (षोडश साहसिकः, पार्श्वजिनेन्द्रस्य शिष्यपरिवारः । महितस्य प्रसेनजितेन सुतस्य वामाश्वसेनयोः ।). ___ वामा महारानी और अश्वसेन महाराज के पुत्र तथा राजा प्रसेनजित् द्वारा पूजित तेवीसवें तीर्थङ्कर भगवान पार्श्वनाथ के शिष्यों को संख्या १६,००० (सोलह हजार) थी।४६५। चोदस साहसीओ, सीसाणं आसि वद्धमाणस्स । सेणियरायनयस्स, तिसलासिद्धत्थ तणयस्स ।४९६। (चतुर्दश साहस्रीकः, शिष्यानामासीत् वर्द्धमानस्य । . श्रेणिक राजनतस्य, त्रिशलासिद्धार्थतनयस्य ।) . महारानी.त्रिशला और महाराज सिद्धार्थ के पुत्र तथा श्रोणिक द्वारा प्रणत चौवीसवें तीर्थङ्कर भगवान महावीर के १४००० (चौदह हजार) शिष्य थे ।४६६। ओसप्पिणी इमीसे, जिणंतर सुमुट्ठिएण कालेणं । वोच्छामि चउव्वीसं, अरहते भारएवासे ४९७) (अवसर्पिण्यामस्यां, जिनान्तरं समुत्थितेन कालेन । वक्ष्यामि चतुर्विशति अरिहन्तान् भारते वर्षे ) प्रवर्तमान इस अवसपिणी काल में एक तीर्थकर के अनन्तर दूसरे तीर्थ कर के उत्पत्तिकाल के माध्यम से मैं भारतवर्ष के चौवीस तीर्थ करों का कथन करूगा।४६७।
SR No.002452
Book TitleTitthogali Painnaya
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKalyanvijay
PublisherShwetambar Jain Sangh
Publication Year
Total Pages408
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size24 MB
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