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________________ 4RRRRR सम्पादकीय 'तित्थोगाली पइन्ना'-नामक इस सैद्धान्तिक एवं इतिहास ग्रन्थ के सम्पादन, छाया एवं हिन्दी अनुवाद करने की इसी वर्ष (१९७५) के प्रथम चरण में पंन्यास श्री कल्याणविजयजी महाराज साहब ने मुझे प्रेरणा की। मैंने उन महासन्त की प्राज्ञा शिरोधार्य कर उनके द्वारा अर्द्धशोधित प्रति के प्राधार पर अपने लिए प्रति दुस्साध्य इस कार्य को मई १९७५ में प्रारम्भ किया। प्रति बड़ी ही अशुद्ध थी। अनेक स्थलों को देखकर तो भयकर निराशा भी हुई । दुविधा में भी पड़ा कि इस प्रकार का असाध्य कार्य में सम्पन्न कर भी सकूगा अथवा नहीं । पर जिस कार्य को एक बार हाथ में ले लिया उसे पंधूरा छोड़ने की आत्मसम्मान ने स्वीकृति नहीं दी। यों तो मैं इस ऐतिहासिक ग्रन्थ से पूर्णतः अपरिचित नहीं था। इसके अनेक उदाहरण अनेक ग्रन्थों और इतिहास विषयक लेखों में वर्षों से पढ़ता पा रहा था। सन १९७१-७२ में श्रद्धेय पण्डित दलसुख मालवरिणया के सौजन्य से मुझे 'कहावलो' के साथ-साथ तित्थोगाली पइन्ना का अन्तिम प्रभाग भी एल० दी० इन्डोलोजिकल इन्स्टीट्यूट अहमदाबाद में पड़ने को मिला था। उन दोनों ग्रन्थों के सम्पादन की उमंगें भी उस समय मानस में तरंगित हुई थीं। तित्थोगाली पइन्ना की जैन धर्म और भारतीय इतिहास से सम्बन्ध रखने वाली कतिपय गाथाएं मेरी जागृत एवं सुषुप्ति दोनों ही
SR No.002452
Book TitleTitthogali Painnaya
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKalyanvijay
PublisherShwetambar Jain Sangh
Publication Year
Total Pages408
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size24 MB
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