________________
[ श्री ]
वाणी की ही तरह पंन्यासप्रवर श्री कल्याणविजयजी महाराज की लेखनी में भी बड़ा चमत्कार धौर प्रद्भुत प्रभाव था । सच्ची बात को सयोक्तिक रूपेण डंके की चोट के साथ कहना और लिखना यह उनकी जन्मजात विशेषता थीं। सच्ची बात को समाज के समक्ष रखने में उन्होंने अपने जीवन में कभी किसी से किंचितमात्र भी भय का अनुभव नहीं किया ।
एक प्रर्जन कुल में उत्पन्न हुए शिशु ने घपने दृढ़ संकल्पों एवं asों के बल पर कालान्तर में एक विशाल कल्पतरु के समान विराट् स्वरूप धारण किया, धर्मप्र ेमी मानव समाज को अपने प्रमृतोपम त्रिविधताप से संतप्त मानव समाज को और विशेषतः धर्मप्रेमी समाज को शीतल सघन छाया से शान्ति पर उपदेशामृतफनों से तृप्ति प्रदान की और इस प्रकार ६८ वर्ष तक समाज को शान्ति पहुंचाने के अनन्तर इस महासन्त ने विक्रम सं• २०३२ आषाढ़ शुक्ला १३ के दिन प्रातः काल ६.१५ बजे ८८ वर्ष की आयु में इहलीला समाप्त कर स्वर्गारोहण किया । ज्ञान का सूर्य अस्त हो गया ।
प्राज इन महासन्त का भौतिक शरीर हमारे समक्ष नहीं है पर इनके द्वारा किये गये समाजहित, संघहित श्रोर जनकल्याण के कार्य शताब्दियों तक भावी पीढ़ियों को मार्गदर्शन कराते हुए प्र ेरणा देते रहेंगे ।
कोटि-कोटि प्रणाम है उस महान विभूति को ।
मुनि मुक्तिविजय