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[ो विषयों के शोधाथियों के लिए बड़े ही उपयोग और मार्गदर्शक हो सकते हैं।
६८ वर्ष के अपने साधनापूर्ण जीवन में इस महासन्त ने भारत के सुदूरस्थ विभिन्न क्षेत्रों में घूम-घूम कर नगर नगर, ग्राम-ग्राम और घर-घर में भगवान महावीर का दिव्य सन्देश पहुंचाया। अपने प्रमोघ उपदेशों से समाज में व्याप्त कुरूढियों और प्रज्ञान को दूर करते हुए, अपने लेखों और ग्रन्थों से भावी पीढ़ियों को सदा के लिए सत्पथ का दिशानिर्देश करते हुए अपना स्वयं का मौर पर का भी कल्याण कर अपने कल्याण विजय नाम को सार्थक किया।
विक्रम सं० १९९४ में मार्गशीर्ष शुक्ला ११ के दिन अहमदाबाद में प्रापको तथा मुनि सौभाग्यविजयजी महाराज को प्रापके गुरू एवं संघ द्वारा 'गणिपद प्रदान किया गया। उसी दिन हमारे चरित्रनायक को गणिपद्ध के साथ पंन्यासपद भी प्रदान किया गया।
पंन्यासप्रद ग्रहण करने से पूर्व और पश्चात प्रापने स्थान-स्थान पर अनेक मन्दिरों की प्रतिष्ठाएं करवाई। जालोर में प्रापकी प्रभावपूर्ण प्रेरणा से जालोर मे नन्दीश्वर तीर्थ की स्थापना एवं समाज कल्याण के विविध कार्यों के लिए एक प्रति विशाल भूखण्ड खरीदा गया । प्रापकी प्रेरणा से ही संघ ने उस भूखण्ड में प्रापके प्रमूल्य निर्देशन में एक प्रति भव्य और विशाल नन्दीश्वर तीर्थ का निर्माण करवाग, जो भारतवर्ष में सबसे बड़ा नन्दीश्वर तीर्थ है। इस नन्दीश्वर तीर्थ का निर्माण कार्य वर्षों तक चलता रहा और मन्ततोगस्वा वि. सं. २००५ को माघ शुक्ला ६ के दिन प्रापश्री के करकमलों से ही इस महान् तीर्थ की प्रतिष्ठा करवाई गई। प्रतिष्ठा के समय इस तीर्थ में ५०० मूर्तियों की प्रतिष्ठा कराई गई।
इसी भूखण्ड में समाज के लोगों की सुविधा के लिए तथा इस तीर्थ की यात्रा करने हेतु प्राये हुए यात्रियों की सुविधा के लिए एक विशाल धर्मशाला का निर्माण करवाया गया। इसी भूखण्ड में सद्विद्या के प्रचार प्रसार के लिए सर्वप्रथम एक भव्य छात्रावास का निर्माण करवा कर छात्रों को सभी प्रकार की सुविधाएं प्रदान की गई थीं।
यह सब विशाल भूखण्ड भूतपूर्व मारवाड़ राज्य के प्रजावत्सल महाराजा श्री उम्मेसिंहजी महाराज साहब के कृपाप्रसाद व लाला श्री हरिश्चन्द्रजी की सहायता से प्राप्त हुमा था।