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________________ [ऐ] तोलाराम के अन्तर्मन में भी अध्ययन और ज्ञानार्जन की भूख बड़े ही तीव्र वेग से जागृत हुई । बालक तोलाराम ने श्रेष्ठीपरिवार के समक्ष अपनी श्रान्तरिक प्रभिलाषा प्रकट की । उदार श्रेष्ठि-परिवार ने अपना अहोभाग्य समझ तोलाराम को श्रमरणश्रेष्ठ कान्तिचन्द्रजी महाराज की सेवा में रहने की अनुमति सहर्ष दे दी । बालक तोलाराम वैरागी गुलाबचन्द्र के साथ-साथ कान्तिचन्द्र जी महाराज से शिक्षा ग्रहण करने लगा । प्रहर्निश पात्मार्थी साधुओं के सम्पर्क में रहने के फलस्वरूप बालक तोलाराम भी वैराग्य के गहरे रंग में रंग गया । अनेक वर्षों तक वैरागी शिक्षार्थी के रूप में मुनि कीर्तिचन्द्रजी के पास शास्त्रों का प्रोर लब्धप्रतिष्ठ विद्वान् आशुकवि नित्यानन्दजी श्रीमाली के पास सारस्वत चन्द्रिका, सिद्धान्त कौमुदी, सिद्ध हेम शब्दानुशासन, धर्मशर्माभ्युदय कादम्बरी, रघ ुवंश, श्रुतबोध, वृहद्रत्नाकर एवं ज्योतिष, न्याय प्रादि विषयों के अनेक ग्रन्थों का मार्मिक अध्ययन किया । विक्रम सं० १६६४ में वैशाख शुक्ला ६ के दिन सिंह लग्न में ऐतिहासिक नगर जालोर में महामुनि केसरविजयजी महाराज के पास हमारे चरित्रनायक वैरागी तोलाराम पुरोहित ने २० वर्ष की युवा वय में अपने साथी वैरागी गुलाबचन्द के साथ निर्ग्रन्थ श्रमरण धर्म की दीक्षा ग्रहण की । दीक्षा के समय केसरविजयजी महाराज ने तोलाराम का नाम कल्याणविजय . और गुलाबचन्द का नाम सौभाग्यविजय रखा । श्रमण धर्म में दीक्षित होने के पश्चात् मुनि कल्याणविजयजी ने प्रमाण नयतत्वालोंक, स्याद्वादमंजरी, रत्नाकरावतारिका प्रादि नेक न्यायशास्त्रों, आगमों, नियुक्तियों, चूणियों, महाभाष्यों, ज्योतिषविद्या के ग्रन्थों श्रौर इतिहास ग्रन्थों का बड़ी ही सूक्ष्म दृष्टि से अध्ययन किया । . मुनि कल्याण विजयजी के अध्ययन की एक बहुत बड़ी विशेषता यह रही कि विविध विषयों के ग्रन्थों का अध्ययन करते समय जो भी विशिष्ट, पूर्व और किसी भी दृष्टि से प्रत्यन्त महत्त्वपूर्ण बात किसी भी ग्रन्थ में दृष्टिगोचर हो गई तो उसे उसी समय डायरी में लिख लिया । सरस्वती के इस महान् उपासक सन्त ने जीवन भर अध्ययन करते समय यही क्रम जारी रखा। उनके इस अथक परिश्रम का ही फल है कि उनके हाथ की लिखी हुई सैंकड़ों डायरियां, नोटबुकें, रजिस्टर, ज्ञानभण्डार में विद्यमान हैं, जो अनेक विद्वानों के लेख प्रादि आज भी उनके प्रभिमत के अनुसार विविध
SR No.002452
Book TitleTitthogali Painnaya
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKalyanvijay
PublisherShwetambar Jain Sangh
Publication Year
Total Pages408
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size24 MB
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