SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 165
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ १३८ ] [ तित्थोगाली पइन्नय सप्पडिकमणो धम्मो, पुरिमस्स य पच्छिमस्स जिणस्स । मज्झिमयाण जिणाणं, कारण जाए पडिक्कमणं ।४४८। (सप्रतिक्रमणो धर्मः, पुरिमस्य च पश्चिमस्य जिनस्य । मध्यमकानां जिनानां, कारणे जाते प्रतिक्रमणम् ।) प्रथम तीर्थंकर भगवान ऋषभदेव और अन्तिम तीर्थंकर भगवान् महावीर के तीथं में मप्रतिक्रमण धर्म था अर्थात् उन साधुओं को प्रातः और सायं दोनों समय प्रतिक्रमण करना अनिवार्य था, पर मध्यवर्ती अजितादि पाश्र्वान्त २२ तीर्थंकरों के तीर्थ में कारण उपस्थित होने पर ही प्रतिक्रमण का विधान था ।४४८। जो जाहे आवज्जइ. माहू अण्णयरगंमि ठाणंमि । सो ताहे पडिक्कमई, मज्झिमयाणं जिणवराणं ।४४९। (यः यदा आपद्यते, साधुः अन्यतरके स्थाने । स तदा प्रतिक्रमति, मध्यमकानां जिनवराणाम् ।) प्रथम और अन्तिम तीर्थंकर के मध्यवर्ती काल में हए बावीस तीर्थंकरों के तीर्थों में जब किसी साधु द्वारा कोई ऐसा कार्य हो जाता था, जो कि साधु के किये वर्ण्य हो, तभी वह साधु गुण से विपरीत अन्यतर गुणस्थान में जाने के अपने उस दाष की आलोचना-विशुद्धि के लिए प्रतिक्रमण करता था ।४४६। बावीसं तित्थयरा, सामाइय संजमं उवदिसंति । छेओवट्ठावणं पुणंवयं, उ ति उसभो य वीरो य ।४५०। (द्वाविंशतिः तीर्थंकराः, सामायिक-संजममुपदिशन्ति । छेदोपस्थापनं पुनव्रतमिति ऋषभश्च वीरश्च ।) __ अजितनाथ से पार्श्वनाथ पर्यन्त बावीस तीर्थंकर पूर्णरूपेण अहिंसा, सत्य, अस्तेय और अपरिग्रह इन चार महा यमों पर आधारित चातुर्याम सामायिक संयम का उपदेश करते हैं। पुरुष के लिए स्त्री और स्त्री के लिए पुरुष की परिग्रह में गणना कर चतुर्थ महाव्रत ब्रह्मचर्य को अपरिग्रह महा यम ( महाव्रत ) के ही अन्तर्गत मानते हुए ब्रह्मचर्य महाव्रत का एक पृथक् महाव्रत के रूप में उपदेश नहीं करते। पर प्रथम तीर्थंकर और चौबीसवें तीर्थकर छेदोपस्थापन धर्म का उपदेश करते हैं ।४५०।'
SR No.002452
Book TitleTitthogali Painnaya
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKalyanvijay
PublisherShwetambar Jain Sangh
Publication Year
Total Pages408
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size24 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy