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| तिस्थोगाली पइन्नय
तीर्थ करों के कैवल्यवृक्ष :
ऋषभादि महावीरान्त चौवीस तीर्थ करों को क्रमशः निम्नलिखित वृक्षों के नीचे केवल ज्ञान उत्पन्न हुआ :
न्यग्रोध (१), सप्तपर्ण (२), शाल (३), प्रियक अथवा प्रियाल (४), प्रियंगु (जामुन) (५), छत्राभवृक्ष (६), शिरीष (७), नाग (८), मालू (मल्लीवृक्ष) (E), पिलङ खु (१०)---१४०८। . . तिदू य पाडलि जंबू य, आसत्थे तहय होइ दहिवण्णे । तत्तो नंदी रुक्खे, तिल पव्वए असोगे य ४०९। (तिन्दुकः पाटलः जंबुश्च , अश्वत्थस्तथा च भवति दधिपर्णः । ततः नान्दिवृक्षः, तिल (पिल ख) पर्वतकोऽशोकश्च ।)
तिन्दुक (११), पाटली (१२), जम्बू (१३), अश्वत्थ (१४), दधिपर्ण (१५), नन्दी (१६), तिल---(पिलङ खु) (१७), पानं (१८), अशोक (१६)-.-१४०६।। चम्पग बउले वेडस, धाबोडग सालतेयए चेव । नाणुप्पया य रुक्खे, जिणेहिं एते अणुग्गहिया ।४१०। (चम्पकबकुले बेतस,-धावोडक' सालतेजकश्चैव ।. ज्ञानोत्पादाच्च वृक्षाः, जिनै एते अनुगृहीताः ।)
चम्पक (२०), बकुल (बकुश) (२१), वेतस (२२), धावडक (धातकी) (२३) और शाल तेजक (२४)। इन वक्षों के नीचे केवल ज्ञान प्राप्त कर तीर्थ करों ने इन्हें (विश्वविख्यात बना) अनुगृहीत किया।४१०। नाणुप्पयाय मासा, फग्गुण पोसे य कत्तिये पोसे । चेत्ते २ चेत्ते२ फग्गुण २, चेत्रे य वइसाहे य ।४११।
१ धातकी। २ एतेषां वृक्षाणामधस्तात् ऋषभादिमहावारान्तश्चतुभिस्तीर्थङ्करः केवल.
ज्ञानमुत्पादितमत एवैतेऽनुगृहीता इत्यर्थः ।