________________
तित्थोगाली पइन्नय ]
. [ १२३
उसमस्स पुरिमताले, बारवतीये अरिट्ठनेमिस्स । आसमपय उजाणे, मल्लिस्स मणोरमे चेव ।४०५। (ऋषभस्य पुरिमताले, द्वारावत्यामरिष्टनेमिनः । आश्रमपदोद्याने, मल्ल्याः मनोरमे चैव ।)
तीर्थ करों के कैवल्योपलब्धि के स्थल :___ भगवान ऋषभदेव को पुरिमताल उद्यान में, अरिष्टनेमि को द्वारिका के आश्रमपद उद्यान में, मल्लिनाथ को मनोरम उद्यान में ।४०५। नाणं च बद्धमाणस्स, उज्जुवाली नदीए तीरंमि ! . सेसाणं सव्वेसि, जमुज्जाणेसु निक्खंता ।४०६। (ज्ञानं च वर्द्धमानस्य, ऋजुपालीनद्यास्तीरे । शेषानां सर्वेषां, येषु उद्यानेषु निष्क्रान्ताः।)
. भगवान् वर्द्धमान को ऋजुपाली नदी के तट पर और शेष तीर्थंकरों उन्हीं उद्यानों में केवलज्ञान उत्पन्न हुआ जिनमें कि वे दीक्षित हुए थे।४०६। बत्तीसइ धणुउई, चेइयरुक्खो उ बद्धमाणस्स । सेसाणं पुण रुक्खा, सरीरओ बारस गुणाउ ।४०७। (द्वात्रिंशत् धषि चैत्य वृक्षस्तु वर्द्धमानस्य । शेषानां पुनर्वृक्षाः शरीरतः द्वादशगुणास्तु ।)
चैत्य वृक्षों की ऊचाई :__ भगवान महावीर के चैत्य वृक्ष की ऊंचाई ३२ धनुष और शेष तीर्थंकरों के चैत्य वृक्षों की ऊंचाई उनके शरीर की ऊंचाई से बारह गुरिणत थी।४०७। नग्गोह सत्तवने साली पियए पियंगु रुक्खे य । छत्चाहे य सिरीसे, नागे मालू पिलक्खू य ।४०८। (न्यग्रोधः सप्तपर्णः शालः प्रियकः प्रियंगुवृक्षश्च । छत्राभश्च शिरीषः नागः मालू पिलक्खुश्च ।)