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तित्थोगाली पइन्नय
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(ज्ञानोत्पादाश्च मासाः, फाल्गुनः पौषश्च कार्तिकः पौषः । चैत्तौ (२) चेत्रौ (२) फाल्गुनौ, चैाश्च वैशाखश्च ।)
केवलज्ञान की उत्पत्ति के मास :-.. तीर्थ करों के केवलज्ञान की उत्पत्ति के मास क्रमशः इस प्रकार
फाल्गुन (१), पौष (२), कार्तिक (३), पौष (४), चैत्र (५), चैत्र (६), चैत्र (७), [चैत्र (८) तीसरे चैत्र के सम्मुख लिपिक द्वारा प्रमाद वश २ की संख्या लगा दी प्रतीत होती है।], फाल्गुन (८), फाल्गुन (६). चैत्र (१०), वैशाख (११)---1४११। . वइसाह चैत्त वइमाह. साढ फग्गू य भद्दवये । चेत्ते कचिय मग्गसिरे य वइसाहे मग्गसिरस्सो ४१२। (वैशाखचत्रवैशाखाषाढाः, फाल्गुनश्च भाद्रपदः । चैत्रः कार्तिकः मार्गशीर्षः यो वैशाखः मार्गशीर्षः)
वैशाख (१२), चैत्र (१३), वैशाख (१४), आषाढ (१५), फाल्गुन (१६) भाद्रपद (१७), चैत्र (१८), कार्तिक (१९) मार्गशीर्ष (२०) वैशाख (२१), मार्गशीर्ष (२२)---२४१२। चेत्ते वइसाहे य मासे, एए अधुणा पक्खे वोच्छामि | बहुलो जोण्हा पंचय, बहुले अट्ठेव य कमेणं ।४१३। (चैत्रः वैशाखश्च मासा एतेऽधुना पक्षान् वक्ष्यामि । बहुलाः ज्योत्स्ना पंच च बहुलाअष्टावेव क्रमेण)
चैत्र (२३) और वैशाख (२४)---ये तोर्थ करों के कैवल्योपलब्धि के मास हैं। अब इनके केवलज्ञान प्राप्ति के पक्षों का कथन करूँगा :---
केवल ज्ञानोत्पत्ति के पक्ष :
कृष्ण (१), शुक्ल (२), शुक्ल (३), शुक्ल (४), शुक्ल (५), शुक्ल (६), कृष्ण (७), कृष्ण (८), कृष्ण (६), कृष्ण (१०), कृष्ण (११), कृष्ण (१२). कृष्ण (१३), कृष्ण (१४)-४१३।