________________
१२० ]
| तिस्थोगाली पइन्नय
समान शिष्यों के साथ पुरुषसिंहों के योग्य शोभास्पद अनन्त पराक्रम को प्राप्त किया । ३६६ ।
दंसणनाण चरित्रस्स, देसचरण निच्छविहरणू | नवसुवि वासेसेवं, निक्खताक्खायकित्ति जिणा | ३९७ / ( दर्शन - ज्ञान - चारित्रस्य, देशचरण निश्चयविधिज्ञा । नवस्वपि वर्षेष्वेवं निष्क्रान्ताऽऽख्यातकीर्त्तिजिना: 1)
,
दर्शन, ज्ञान, चारित्र तथा व्यवहार और निश्चय की विधि के पूर्ण ज्ञाता विश्वविश्र ुत कीर्तिशाली क्षेत्रों के तीर्थंकर भी इसी प्रकार महाभिनिष्क्रमण कर प्रव्रजित हुए । ३६७।
ह
सुमहत्थ विच्चभत्तण, निग्गओ वासुपुज्जों जिणो चउत्थेण । पासो मल्लिच्चिय, अङ्कुमेण सेसाउन ३९८ | (सुमतित्थ नित्यभक्त ेन निर्गतः वासुपूज्य जिनश्चतुर्थेन । पार्श्वः मल्ली किल, अष्टमेन शेषास्तु षष्ठेन )
तीर्थंकर का अभिनिष्क्रमण तपः
भगवान सुमतिनाथ नित्य भक्त अर्थात् अनवरत भक्त से, वासुपूज्य चतुर्थ भक्त (एक उपवास) से, पार्श्वनाथ तथा मल्लिनाथ अष्टम भक्त अर्थात् वेळ की तपस्या से और शेष वीस तोथङ्कर षष्ठ भक्त अर्थात् बोळे ( दो उपवास ) की तपस्या से अभिनिष्क्रमरण कर दीक्षित हुए |३८|
नास्ति प्रतावपि । ३९९ ।
[ ३६६ संख्या की गाथा हमारे पास की हस्तलिखित प्रति में नहीं है । पूर्वापर सम्बन्ध को देखते हुए, ऐसा तो प्रतीत नहीं होता कि कोई गाथा लिपिक दोष के कारण छूट गई हो । संख्या लगाने में ही सम्भवतः कोई त्रुटि रह गई है । ]
संवच्चरेण भिक्खा, लद्धा उसभेण लोगनाहेण ।
सेसेहिं बीय दिवसे लद्धाउ पढमभिक्खाउ ४०० |
१ व्यवहार
,