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________________ तित्थोगाली पइन्नय ] [ १२१ (संवत्सरेण भिक्षा, लब्धा ऋषभेण लोकनाथेन । शेषैद्वितीय दिवसे, लब्धाः प्रथमभिक्षास्तु ।) त्रैलोक्यनाथ भगवान् ऋषभदेव ने एक वर्ष पश्चात् प्रथम भिक्षा प्राप्त की। शेष सब तीथंकरों ने दीक्षा ग्रहण करने के दूसरे दिन ही प्रथम भिक्षा प्राप्त को ।४००। उसभस्स पढम भिक्खेक्खोयरसो असि लोगनाहस्स । सेसाणं परमण्णं, अमियरस रसोवमं आसि ।४०१॥ . (ऋषभस्य प्रथमभिक्षायामिक्षुरसमासील्लोकनाथस्य । शेषानां परमान्नं, अमृत रस-रसोपममासीत् ।) लोकनाथ ऋषभदेव की प्रथम भिक्षा में इक्षुरस और शेष तेबीस तीर्थ करों की प्रथम भिक्षा में अमृतरस के समान स्वादिष्ट श्रेष्ठ पकवान्न था ।४०१। मल्लीपासुसभस्स, गाणं सेज्सवासुपुज्जस्म । --- पुव्वण्हे उप्पण्णं, सेसाणं पच्छिमण्हम्मि ।४०२। (मल्लीपार्श्वर्षभस्य, ज्ञानं श्रेयांस वासुपूज्यस्य । पूर्वाह णे उत्पन्नं, शेषांनां पश्चिमाह्न ।) __ मल्लिनाथ, पार्श्वनाथ, ऋषभदेव, श्रेयांसनाथ और वासुपूज्य इन पांच तीर्थकरों को पूर्वाल में तथा शेष १६ तीर्थ करों को पश्चिमाह्न में केवलज्ञान की उपलब्धि हुई ।४०२। [स्पष्टीकरण-सत्तरियस ठाणा में निम्नलिखित गाथार्द्ध द्वारा केवल भगवान महावीर का पश्चिमाह्न में और शेष २३ तीथं करों को पूर्वाह्न में केवलज्ञात को उपलब्धि का उल्लेख किया गया है नाणं उसहाईणं, पुव्वण्हे पच्छिमण्हि वीरस्स ।१६० ऐसी स्थिति में यह गाथा सं० ४०२ विद्वानों के लिए विचारणीय है ।]
SR No.002452
Book TitleTitthogali Painnaya
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKalyanvijay
PublisherShwetambar Jain Sangh
Publication Year
Total Pages408
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size24 MB
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